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पाबन्दी के आज्ञापत्र निकले थे' और दशलाक्षण के जैन पर्व में तो निरन्तर १० दिन तक समस्त राज्य में हर प्रकार की हिंसा बन्द कर रखी थी।
४०-शाहजहाँ (१६२७-१६५८ ई०) के समय आगरा में नग्न जैन साधुओं का आगमन हुआ था और स्वयं शाहजहाँ ने दि० जैन कवि बनारसीदास जी का सम्मान किया था। श्री जी. के. नारीमान, सम्पादक बॉम्बे क्रानिकल के शब्दों में अकबर और जहाँगीर के आज्ञापत्रों से भी अधिक जैनधर्म की प्रभावना और जीवहिंसा की जैन तीर्थ-स्थानों पर पाबन्दी के फर्मान शाहजहाँ ने जारी किये थे। .४१-औरङ्गजेब (१६.८-१७०७ ई०) के समय आगरे के जैन कवि विनोदीलाल जी ने जैन मुनि श्री विश्वभूषण जी की भक्तामर मूल संस्कृत की टीका श्रावण शुक्ला दशमी सं० १७४६ को रविवार के दिन लिखी, जिसमें उन्होंने बताया कि औरङ्गजेब के राज्य में जैनियों को जिनेन्द्र-भक्त आदि क्रियाओं की स्वतन्त्रता प्राप्त थी । यह अपने इस्लाम धर्म का पक्का श्रद्धानी था, परन्तु १ जी. के. नारीमान, सम्पादक बॉम्बे कानिकल : उर्दू दैनिक मिलाप,
कृष्ण नं० अगस्त १९३६, पृ० ३६ । Jehangir forbidden hunting, fishing and other slaughter of animals in his reign during the ten days of pajjusan. -Alfred Master I.C.Š.: Vir Nirvan Day in London (W J.M.) P.4. ३-४ वीर (१ मार्च १९३२) वर्ष ६, पृ० १५५ ।
५ उर्दू दैनिक मिलाप, कृष्ण नम्बर (अगस्त १६३६) पृ० ३६ । ६ औरङ्गसाह बली को राज, पातसाह साहिब सिरताज ।
सुषनिधान सकबन्ध नरेस, दिल्लीपति तप तेज दिनेस । ३१ ।। जाके राज सुचैन सकल हम पाइयो, ईत भीत नहिं होय सुजिन गुन गाइयो । ४४॥ -भक्तामर स्तोत्र ।
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