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शरीर ही को खा कर सन्तुष्ट होते और दूसरे जीवों की हिंसा न करते । जीव-हिंसा को रोकना बहुत आवश्यक है, इसीलिये मैंने स्वयं मांस खाना छोड़ दिया है”।
V. A. Smith के शब्दों में "जैन साधुओं ने निःसन्देह अकबर को वर्षों तक शिक्षा दी, जिसके प्रभाव से उन्होंने अकबर से जैनधर्म के अनुसार इतने आचरण कराये कि लोग यह समझने लगे थे कि अकबर बादशाह जैनी होगया । यही कारण है कि अकबर के राज्य समय पुर्तगीज पादरी Pinheiro भारत की यात्रा को आया तो उसने हर प्रकार से अकबर को जैनधर्मी पाया, इसीलिये इसने ३ सितम्बर १५६५ ई० को अपने बादशाह के पत्र में लिखा, "अकबर 'जैनधर्म' का अनुयायी है" ।
३६-जहाँगीर (१६०५-१६२७ ई०) जैन साधुओं का बड़ा आदर करते थे। इन्होंने जैनाचार्य श्री हरिविजय सूरि, श्री विजयसेन और श्री जिनचन्द्र जी का बड़ा सम्मान किया था। श्री जिनचन्द्र जी के शिष्य श्री जिनसिंह जी को 'युग-प्रधान' की पदवी प्रदान की थी । जैन तीर्थों के निकट जीवहिंसा की
१ Ayeen-i-Akbari, Vol. III, P. 330-400. २ 'Jain holy men, undoubtedly gave -Akbar prolonged instruc
tions for years, which largely influenced his actions; and they secured his assent to their doctrines so far that he was reputed to have been converted to Jainism".
-Smith, Jain Teachers of Akbar, P. 335. ३ "He (Akbar) follows the sect of the Jainas"
--Pinheiro, quoted by Smith : Akbar, P. 262. x_y Jainacharyas were honoured also by Emperor Jehangir, who conferred the title of 'Yuga Pradhana' on Jinasimha'.
-New Indian Antiquary, Vol. I, P. 520.
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