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छक्के छूट गये और मुसलमान सेनापति को मैदान छोड़कर भाग ना पड़ा, फिर क्या था ? गुजरात का बच्चा २ आयू की वीरता के गीत गाने लगा । उसको अभिनन्दन-पत्र देते हुए रानी ने हँसी में कहा कि सेनापति जी जब युद्ध में एक-इन्द्रिय दो इन्द्रिय जीवों तक से क्षमा मांग रहे थे तो हमारी फौज घबरा उठी थी कि एकेन्द्रिय जीव तक से क्षमा मांगने वाला पञ्चेन्द्रिय मनुष्य को युद्ध में कैसे मार सकेगा ? इम पर व्रती श्रावक श्राबू ने उत्तर दिया कि महारानी जी, मेरे अहिंमा व्रत का सम्बन्ध मेरी आत्मा के साथ है, एकेन्द्रिय दो इन्द्रिय जीवों तक को बाधा न पहुँचाने का जो नियम मैंने ले रखा है वह मेरे व्यक्तिगत स्वार्थ की अपेक्षा से है । देश की सेवा अथवा राज्य की आज्ञा के लिये यदि मुझे युद्ध अथवा हिंसा करने की प्रणवश्यकता पड़ती है तो ऐसा करना मैं अपना परम धर्म समझता हूँ। क्योंकि मेरा यह शरीर राष्ट्रीय सम्पत्ति है, इसका उपयोग राष्ट्र की आज्ञा और आवश्यकता के अनुसार ही होना उचित है, परन्तु आत्मा और मन मेरी निजी सम्पत्ति है, इन दोनों को हिंसा भाव से अलग रखना मेरे अहिंसा व्रत का लक्षण है' ।
कोकण प्रदेश पर मुसलमानों ने आक्रमण किया। विजयनगर के राजा ने उनको मार भगाने के लिये अपने सेनापतियों के सम्मुख पान का बीड़ा डाल दिया। तमाम योद्धाओं को परेशान देखकर जैनवीर वैचप्प ने उठा कर उसे चबा लिया । उसका भाई इरुगप्प भी महायोद्धा और जैनधर्मी था, ये दोनों युद्ध-शूर इस वीरता से लड़े कि हिन्दू राजाओं ने इनकी वीरता की प्रशंसा में वे वीररस भरे, शिलालेख खुदवाये कि जिनको पढ़कर कायरों की भुनायें भी फड़क उठती हैं। ___ सन् १०३३ ई० में मुहम्मद के सेनापति सैयदसालार मसूद ने १ हमारा पतन पृ० १४०-१४२ वे जैन हितैषी, भा० १५ अङ्ग ६-१० । २-३ श्रवणबेनगोल का शिलालेख नं० ६० ।
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