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२३ - जयपुर को महाराजा जयसिंह ने १७२६ ई० में बसाया था । यह जैनधर्म अनुरागी थे । इनके प्रधान मन्त्री विद्याधर जैनधर्मी थे। जयपुर के दीवान अमरचन्द व्रती जैनधर्मी थे । रियासत जयपुर में ही भ० महावीर का अतिशयक्षेत्र चाँदनपुर है, जहाँ एक टीले पर खुद बखुद गाय के स्थानों से दूध भरते देखकर ग्वाले ने आश्चर्यपूर्वक खोदा तो भ० महावीर की एक प्रभाव - शाली मूर्त्ति निकली 3, जो मनोकामना पूरा करने में प्रसिद्ध है । यही कारण है कि इसको केवल जैन ही नहीं बल्कि अजैन गूजर और मीने भी बड़ी श्रद्धा के साथ पूजते हैं। महाराजा जयपुर ने भी कई गाँव वीर-पूजा के लिये इस जैन मन्दिर को भेंट कर रखे हैं । भ० वीर का अतिशय इस पंचमकाल में भी साक्षात् आजमाने के लिये कम से कम एक बार अवश्य इस वीर अतिशय (Miracle Place of Mahavira) के दर्शन करके अपनी मनोकामना को पूरी करें ।
२४ - भरतपुर के राजा ने अपने दीवान जोधराज को मृत्यु दण्ड का हुक्म दिया । उस ने भ० महावीर की आराधना और जयपुर राज्यके चाँदनपुर में वीर स्वामी का विशाल मन्दिर बनवाने की प्रतिज्ञा की । उनको मारने के लिये तोप चलाई परन्तु गोला उनके चरणों को छूते ही ठण्डा हो गया । तीन बार तोप चलाई मगर हर बार ऐसा ही हुआ । इस अतिशय से प्रभावित होकर महाराजा भरतपुर ने उनको क्षमा कर दिया और भ० महावीर के मन्दिर बनवाने के लिये अपने पास से लाखों रुपया भेंट किया " । २५ - जोधपुर के राजाओं का जैनधर्म में गाढ़ा अनुराग रहा है । प्राचीन राठौरों ने तो जैनधर्म को खूब अपनाया । महाराजा
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१-२ The Jains enjoyed his (Jaisingh's) peculiar estimation. Vidyadhar, his chief coadjutor was a Jain:
-Todd's Annals & Antiquities of Rajasthan. Vol. II. P. 339. 3. This book's PP. 135-136 & 201-204.
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