Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 515
________________ ३७ - मुग़लवंशी बाबर बादशाह ( १५२६ - १५३० ई० ) अहिंसा के प्रेमी और मज़हबी पक्षपात से पाक-साफ थे । इन्होंने मरते समय अपने पुत्र हुमायूँ को वसीयत की थी कि अपने हृदय को धार्मिक पक्षपात से शुद्ध रखना और गौ-हत्या से दूर रहना' । हुमायूँ (१५३० - १५४० ई०) के राज्य में जैनियों को धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार की बाधा नहीं हुई। यह जीव - हिंसा और पशुबलि को पसन्द नहीं करता था । ર ४ ३८ - सूरिवंशी ( १५४० - १५५५ ई० ) राज्य में जैनधर्म खूब फूला - फला था । मुग़ल और सूरि-राज्य के समय श्रीचन्द्र, माणिक्यचन्द्र, देवाचार्य, क्षेमकीर्ति आदि अनेक प्रसिद्ध दिगम्बर मुनि हुए हैं । इसी समय फ्रेन यात्री Bernier तथा Tavernier ने भारत में भ्रमण किया था । इन्होंने जैन नग्न साधुओं को बिना किसी रोक-टोक के बड़े-बड़े शहरों में चलते-फिरते पाया " । इनका कहना है, "नग्न जैन साधुओं के दर्शन न केवल पुरुष बल्कि नवयुवक तथा सुन्दर-से-सुन्दर स्त्रियाँ तक भी बड़ी श्रद्धा से करती थीं, परन्तु नग्न जैन साधुओं ने अपने मन और इन्द्रियों पर इतनी विजय प्राप्त कर रखी थी कि उनसे बात-चीत करके इनके हृदय में किसी प्रकार के विकार उत्पन्न नहीं होते थे " । स्वयं शेरशाह सूरि के अफसर Mallik Mohd Jayasi ने अपने पद्मावत नाम के ग्रन्थ में दिगम्बर मुनियों का सूरि राज्य में होना स्वीकार किया है : : ७ "कोई ब्रह्माचारज पंथ लागे । कोई सुदिगम्बर श्राडा लागे ॥ - मलिक मुहम्मद जायसी : पद्मावत, २ । ६० । Romance of Cow (Bombay Humanitarian League) P. 27. १-२ ३-४ वीर (१ मार्च १९३२) वर्ष ६, पृ० १५५ । ५-६ Foot notes Nos. 3 and 4 of this books, P. 306. ७ New Indian Antiquary, (Nov. 1938 ) Vol. I, No. 8, P. 519. [ ४८६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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