Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 513
________________ ३३-खिलजीवंश ( १२६०-१३२० ई०) का सुल्तान जलालुद्दीन तो इतना अहिंसा-प्रेमी था कि राज्य-विद्रोहियों तक को क्षमा कर देता था और बागियों तक पर भी हिंसा न करता था'। जैनाचार्य श्री महासेन जी ने अलाउद्दीन खिलजी से सम्मान प्राप्त किया था । महासेन जी का इनके दरबार में धार्मिक शास्त्रार्थ हुआ था और अलाउद्दीन बादशाह ने इनके ज्ञान . और तप के सम्मुख अपना मस्तक भुकाया था। १५३० ई० के शिलालेख से प्रकट है कि जैन मुनि विद्यानन्दि के गुरुपरम्परीण श्री आचार्य सिंहनन्दि ने इनके दरबार में बौद्ध आदि को वाद में हराया था | वास्तव में अलाउद्दीन खिलजी के निकट दिगम्बर मुनियों को विशेष सम्मान प्राप्त था । Dr. H. V.Glasenapp के शब्दों में इन्होंने श्वेताम्बर जैनाचार्य श्री रामचन्द्र सूरि जी का भी बड़ा आदर-सत्कार किया था । ३४- तुग़लकवंशी (१३२०-१४१३ ई०) राज्य में जैनियों को धार्मिक क्रियाओं के लिये पूरी स्वतन्त्रता प्राप्त थी । इन्होंने जैन गुरुओं का सम्मान किया था । सुल्तान ग़यासुद्दीन तुग़लक के 'सरा' और 'वीरा' नाम के दो राज-मन्त्री जैनी थे । १ डा० तागचन्दः अहले हिन्द की मुख्तसर तवारीख, भा० १, पृ० १६६ २ Studies in South Indian Jainism, Vol II, P. 132. 3-Y Mahasena appeared before Allauddin and held religicus discussions with his adversaries. The Sultan bent his head before his profound learning and asceticism. -J. S. Bhaskara, Vol. I, P. 109, New Ind. Ant. Vol. I, P 517. ५-६ वीर (१ मार्च १६३२) वर्ष ६, पृ० १५४ । Dr. H. V. Glasenapp: Der Jainismus (Berlin) P. 66. During the Tughalaq reign, the Jainas enjoyed much freedcm, since more than one king of that line are reported to to have entertained the Jaina Gurus Sura' and 'Vira' the two Jaina Chiefs of Pragvata clan, were the ministers of Ghayasuddin Tughalaq. -Dr. Saletore: Karnataka Historical Review, Vol. IV. P. 86. [ ४८७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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