Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 512
________________ ३०-गजनी के सुल्तान सुन्तगीन (६७७-६६७ ई०) पर अहिंमा धर्म का इतना अधिक प्रभाव था कि उन्हें विश्वास था कि ग़जनी का राज्य ही उनको हरिणी के बच्चे पर अहिंसा करने से प्राप्त हुआ है। इनके पुत्र महमूद ग़जनी (६६७-१०३० ई०) अजमेर पर अधिकार जमाने को आये, तो टाड साहब के शब्दों में अहिंसा-धर्मानुयायी चौहानों ने ही उन्हें युद्ध में घायल किया था, जिसके कारण उन्हें नादोल की ओर भागना पड़ा। ३१-गौरीवंश के सुल्तान मोहम्मद गोरी (११७५-१२०६ ई०) के समय में नग्न साधु अधिक संख्या में थे | इन्होंने नग्न जैन साधुओं का सम्मान किया था, क्योंकि उनकी बेगम दिगम्बर जैनाचार्य के दर्शनों की अभिलाषिणी थी। ___३२-गुलामवंशी (१२८६-१२६८ ई.) राज्य के समय मूलसङ्घ सेनगण के जैनाचार्य श्री दुर्लभसेन, अनेक दिगम्बर साधुओं सहित जैनधर्म की प्रभावना कर रहे थे । इसी वंश के प्रथम सुल्तान कुतुबुद्दीन ने देहली में एक मीनार बनवाया था, जो आजतक 'कुतुबमीनार' के नाम से प्रसिद्ध है । तेरहवीं शताब्दी में यूरोपियन यात्री Morco Polo भारत में आये तो इन्हें जैन साधु मिले, जो नग्न अवस्था में बिना किसी रोक-टोक के बाजारों तक में चलते-फिरते थे। १ टाड राजस्थान भा० २, अध्याय २७, पृ० ७४८ । 8 "It was the nudity of Jain Saints, whom Sultan found in a gocd number in India" -Elliot. loc cit. P. 6. It is said about Sultan Mohammad Ghori that he at least entertained one of them (Jain Naked Saints ) since his wife desired to see the Chief of Digambaras". -Ind. Ant. Vol. XXI, P, 361. quoted in New Ind. Ant. I, 517. ४ वीर, वर्ष ६, पृ० १५३ । ५ Yule's Morco Polo, Vol. II, P..366. ४८६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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