Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 510
________________ वैष्णव आदि अजैन भी पूजते हैं' । ऋषभदेव जी की यह मूर्ति काले रंग की होने के कारण भील इनको कालाजी कह कर अपना इष्टदेव मानते हैं और इतनी श्रद्धा रखते हैं कि उन पर चढ़ी हुई केशर को जल में घोल कर पी लेने पर कभी झूठ नहीं बोलते, चाहे उनकी जान चली जाये । महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ने श्री ऋषभदेव जी की पूजा के लिये उनके मन्दिर जी को गाँव भेंट किया था और फतहसिंह तथा महाराणा भोपाल सिंह ने भी श्री ऋषभदेव की मूर्ति को नमस्कार करके इनको लगभग अढाई लाख रुपये की भेंट दी थी। इन्होंने जैन मुनि श्री चौथमल जी के उपदेश से प्रभावित होकर यहाँ पशु-हत्या होने पर पाबन्दी लगा दी थी । ___महाराणा साँगा ने चित्रकूट के स्थान पर जैनाचार्य श्री धर्मरत्न सूरि का हाथी, घोड़े, सेना और बाजे-गाजों से बड़ी भक्ति पूर्वक सत्कार किया था और उनके उपदेश से प्रभावित होकर शिकार आदि का त्याग कर दिया था। मछेन्द्रगढ़ के राणा करण के चारों पुत्रों समधर, वीरदास, हरिदास और उध्रण ने जैनाचार्य श्री जिनेश्वर सूरि से श्रावक के व्रत लिये थे । महाराणा उदयसिंह की रक्षा जैन वीर अाशाशाह ने की थी और इन्होंने ही बनवीर से युद्ध करके उदयसिंह को राज वापिस दिलवाया था। महाराणा प्रतापसिंह के राजमन्त्री तथा सेनापती भामाशाह जैनधर्मी थे, जिन्होंने देश-रक्षा के लिये स्वयं अनेक युद्ध किये, बल्कि महाराणा प्रताप को भी देश-सेवा के लिये उत्साहित किया । और अकबर की आधीनता स्वीकार न करने दी। १- ६ राजपूताने के जैन वीरों का इतिहास, पृ० ४८, ६७, १६७ । ७-८ राजपूताने के जैन वीरों का इतिहास, पृ० ७१, २४५ । “१-११ इसी ग्रन्थ के पृ० ४२६-४३१ । ४८४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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