________________
ये सब बिल्कुल जैन-साधु की चर्या के अनुसार हैं। जिससे स्पष्ट है कि म० बुद्ध जैनधर्म ग्रहण करके जैन-साधु होगये थे', परन्तु कठोर तपस्या से घबरा कर जैन-मुनि पद को छोड़ दिया
और अपना मध्यमार्ग "बौद्धधर्म" स्थापित किया । जैन तपस्या को कठोर समझते हुए महात्मा बुद्ध कहते हैं
"निगण्ठा उब्भट्टका आसनपटिक्खिता, अोपक्कमिका दुक्खा तिष्पा कुटका. वेदना वेदियथाति । एवं वुत्ते, महानाम, ते निगएठा मं एतदवोचु, निगएठो,आवुसो नाठपुत्तो सब्वज्ञ, सब्बदस्सावी अपरिसेसं ज्ञान दस्सनं परिजानातिः चरतो च मे तिटठतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं ज्ञानदस्सनं पक्चुपट्रिठतंति .. .. इति पुराणानं कभ्मानं तपसा व्यन्तिभावा नवानं कम्मानं अकरणा आयति अनवस्सवो, आयर्ति अनवस्सवा कम्मक्खयो, कम्मरखया दुबखनखयो, दुक्खक्खया वेदनाक्खयो वेदनाक्खया सब्वं दुक्खं निजण भविस्सति तं च पन् अन्हाक रुच्चति चेव खमति च तेन च आम्हा अत्तमना ति" 1 -मझिमनि० P. T. S. I. PP. 92-93.
भावार्थ - "ऐसी घोर तपस्या की वेदना को क्यों सहन कर रहे हो' ? मैंने निर्ग्रन्थों (जैन साधुओं) से पूछा तो उन्होंने कहा, "निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र महावीर सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं उन्होंने बताया है कि कठोर तप करने से कर्म कटकर दुख क्षय होता है'। इस पर बुद्ध कहते हैं, “यह कथन हमारे लिये रुचिकर प्रतीत होता है और हमारे मन को ठीक अँचता है। __ महात्मा बुद्ध का ईश्वर को कर्ता-हर्ता मानना', पशु-वलि
और जीव-अहिंसा का विरोध, कर्म-सिद्धान्त' और मोक्ष में १.२. In fact Buddha being inspired by the teachings of
Lord Mahavira became Jain Saint, but having been unable to stand the hard life of a Jain monk, be
founded the Sorm Path.-J. H. M. (Feb. 1925) P. 26 ३.४. Ramata Pd: Bhagwan Mahavir (2nd Editien) P. 369, 4. Karma theory of Jains is an original and integral part
of their system. They (Buddhists) must have borrowed the term (Asrava) from Jains. -Encyclopaedia of Religion & Ethics, Vol. VII. P. 472.
[४३७
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com