________________
नाम का प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रंथ Medical Encyclopaedica की रचना इन्हीं के समय की थी । अमोघवर्ष जिनेन्द्र भगवान के दृढ़ विश्वासी थे' । जैनधर्म की प्रभावना के लिये इन्होंने जैन मन्दिरों को खूब दिल खोलकर दान दिये । अरबी लेखकों ने भी इनको जिनेन्द्र भगवान का पुजारी और सारे संसार के चौथे नम्बर का महान् सम्राट् स्वीकार किया है । स्मिथ के शब्दों में इतने प्रसिद्ध महायोद्धा शहंशाह का जैनधर्म स्वीकार करना कोई साधारण बात नहीं थीं। ये जैनाचाय श्री जिनसेन जी के चरणों में नमस्कार करके अपने आपको पवित्र मानते थे। इनके हो प्रभाव से ये राज्य, अपने पुत्र कृष्णराज द्वि० को देकर स्वयं जैन साधु हो गये थे । इन्होंने 'प्रश्नोत्तर-रत्नमाला' नाम का ऐसा सुन्दर जैन ग्रन्थ रचा कि जिसको कुछ लाग श्री शंकराचार्य जी की और कुछ श्वेताम्बरी महाचार्य को रचना बताते हैं, परन्तु स्वयं इसी ग्रन्थ के प्रथम श्लोक से प्रगट है कि यह अमोघवर्ष की ही रचना है। यह श्री वर्द्धमान महावीर जी के इतने परम भक्त थे
8-3 Amoghavarsha granted donations for Jain
temples and wasa living ideal of Jain Abinsa - Arab writers portray him as a Worshipper of Jina and one out of the 4 famous kings of the world.
-Some Historical Jain Kings & Heroes P. 47. ४. दिगम्बर जैन (सुरत) वर्ष ६, पृ०७२ । 4. Amoghavarsha prostrated bimself before Jinasena
and thought himself purified thereby".-Pathak:
JBBRAS. Vol. XVIII. P. 224. &. Amoghavarsha became a JAIN MONK towards
the close of his career.-Smith: Hist. of India P. 429 Anekant Vol. V P. 184.J. S. B. Vol. IX. P. 1.
SHJK & Heroes. P. 42 & 46 जैन हियैषी वर्षे ११ पृ० ४५६. ७-८ अयोध्याप्रसाद गोयली: जैन वीरों का इतिहास और हमारा पतन, पृ० ११५.
1 ४५६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com