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सारा स्वर्णमयी होगया तब इन्होंने भर्तृहरि से कहा, "यदि तुम्हें स्वर्ण की ही आवश्यकता है तो यहां से उठाले, जितने स्वर्ण की तुम्हें आवश्यकता है" . यह अतिशय देखकर भर्तृहरि जी के हृदय के कपाट खुल गये और वह भी जैन साधु होगये' इन दोनों के दीक्षा ले लेने के कारण राज्य के अधिकारी इनके छोटे भाई महाराजा भोज (१०४८-१०६० ई०) हुये। यह जैन विद्वानों का बड़ा सन्मान करते थे । जैनाचार्य श्री शान्तिसेन ने इनके दरबार में शास्त्रार्थ करके सैंकड़ों प्रसिद्ध अजैन विद्वानों पर जैनधर्म की गहरी छाप मारी । जैनाचार्य श्री प्रभचन्द्र जी का तो महाराजा भोज पर इतना अधिक प्रभाव था कि भोज ने उनके चरणों में नमस्कार किया था । जैनकवि धनपाल के प्रभाव से राजा भोज ने अहिंमाधर्म ग्रहण कर लिया था। कवि धनञ्जय और जैनाचार्य श्री नेमिचन्द्र जी तथा श्री नयनन्दीजी ने भोज के राज्य समय जैनधर्म की प्रभावना के अनेक कार्य किये । महाराजा भोज ने जिनेन्द्र-भक्ति के लिये जैन मन्दिर बनवाया था। इनके सेनापति कुलचन्द्र भी जैनधर्मी थे। श्री धनञ्जय जी ने भोजको मांस मदिरा १. विनोदीलाल : भक्तामर स्तोत्र टीका । २.३ Bhoj welcomed Jain Scholars. The great debator
Shantisena graced his Darbar and held a successful
debate with non-Jain scholars. SH.JK & Heroes. P.87. 8. Jain Saint Prabhachandra also commanded re from king Bhoja, who worshipped his feet.
Car. II. Sr. No. 55. 4-€ Jain Poet Dhanpal possessed great influence and
led the king to observe the teachings of Ahinsa. Kavi Dhananjya, acharyas Nemichandra & Nayanandi glorified JAINISM during his reign.
--Some Historical Jain King & Heroes. P. 87. ७. Annual Report of Archaelogical Survey of India.
(1906-1907) P. 209. ८. विशेश्वरनाथ रेऊ, भारत के प्राचीन राज्यवंशीय (बम्बई) भा० १ पृ० ११५.
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