Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 499
________________ पार्श्वनाथ रखा था' क्योंकि इन्हें विश्वास था : भ० पार्श्वनाथ के मन्दिर बनवाने के शुभ फल से मुझे युद्धों में विजय और पुत्र दोनों वस्तुएं प्राप्त हुई हैं और मेरा हृदय सुख और शान्ति से तृप्त होगया।" इनका सेनापति गङ्गराज महायोद्धा और जैनधर्मी था । इसने पुराने जैन मन्दिरों की मरम्मतें करवाई और नए जैन मन्दिर बनवाये। इन्होंने जिनेन्द्रभगवान की मूर्तियों और इनके पुजारियों की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझता था । विष्णुवर्धन की रानी शान्तलादेवी जैन धर्म में दृढ़ विश्वास रखती थी । इसने ११२३ ई० में एक बड़ा विशाल जैन मन्दिर बनवाया था। ये व्रती श्राविका थी और इसने सलेखना के व्रत धारण किये थे । विष्णु वर्द्धन के पुत्र महाराजा नरसिंह ने जैन मन्दिरों के लिये खूब दिल खोल कर दान दिए थे और स्वयं जिनेन्द्र भगवान के दर्शन-पूजा के लिए जैन-मन्दिरों में जाते थे। इनका सेनापति हुल्ल महा योद्धा और जैन धर्मी था," जिस ने जैन धर्म की प्रभावना और जिनेन्द्र भक्ति के लिये बड़ा सुन्दर जैन मन्दिर बनवाया था। विष्णुवर्धन का पुत्र बलाल द्वि० (११७३-१२२० इ० )जैनाचार्य वासुपूज्य जी का शिष्य था । जिनेन्द्र भक्ति के लिये मन्दिरों में जाते थे और उनको दानदिये। नरसिंह तृ० (१२२०-१२५४) जैनधर्म में दृढ विश्वास रखते थे' ५ । इन्होंने जिनेन्द्र भगवान की भक्ति की और जैन-मन्दिरों की १-२ Visnuvardhana signified his respect saying, “By the merits of the consecration of Parsvanatha I obtained both a victory and the birth of a son and have been filled with joy." Thereupon he gave to the God name of VIJAYA-PARSVA". EP. Car. V. Belur, 124, 3-4. “Gangraj bis (Vishnuvardhana's) minister & general was considered one of the 3 pre-eminent promoters of Jainism. He endowed and repaired Jain temples and protected priests and images”. __ -Jainism & Karnataka Culture. P.4l. ६-१५. Saletore: loc. cit. P. 81-82 & Some HJK&H. P.80-82. [४७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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