Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 500
________________ मरम्मतें कराई' । जैनाचार्य श्री माघनन्दी सिद्धान्ता इनके गुरु थे और उनको जैनधर्म की प्रभावना के लिये दान दिये थे। इनके भाई महाराजा रामनाथ (१२५४-१२६७ ई०) व्रतीजैन धर्मी थे इन्होंने २३वें तीर्थङ्कर श्री पार्श्वनाथ भगवान को स्वर्ण भेंट किया था शिलालेखों के अनुसार होयसलवंशी नरेश जैन धर्म के इतने प्रेमी थे कि इनकी शक्ति और प्रभाव का जैन धर्म की शक्ति और प्रभाव स्वीकार किया जाता था । २०.कलचरि बंशी महायोधा विज्जलदेव (११५६-११६७)जैनधर्मी थे जैनधर्म को दृढ़ बनाने में अधिक रुचि रखते थे। जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति के लिये इन्होंने बहुत से जैन मन्दिर बनवाये थे । इनका पुत्र महाराजा सोमेश्वर भी जैनधर्म का अनुरागी था' । वास्तव में कलचूरि नरेश जैनधर्म के पाषक थे। यह जैन धर्म पालने में पक्के और यथेष्ट थे। २१. विजयनगर क नरेश हरिहर प्र० के समय उनकी राजधानी में १६ वें तीर्थकर श्री शान्तिनाथ जो की मूर्ति की स्थापना हुई थी। कम्बड़हल्लो के दान-पत्र से प्रगट है “जैनियों का सभी गुणों से युक्त, लकुलोश्वरमत के अनुयायी और पाँच प्रकार की दीक्षा के संस्कारों को पालने के कारण सात करोड़ श्री रुद्रों ने १-४ Saletore: loc. cit. P. 81-85. SHJK & Heroes P. 80-82. 4. Inscriptions truly indicate the dynamic power of Hoysalas and their power meant also power of the Taina religion patronised bythem-J.&K.Culture. P.40. ६-8. Bijjala (1156-1167 A. D.) was himself a Jain and a great supporter of Jaia sms. He took keen interest in safeguarding Jainism. He built many Jaina temples. His son Somes vra also was a supporter of Jainism. -Some Historical Jain Kings & Heroes. P. 73-75. १०-११ प्रो० हीरालाल : राजपुताने के प्राचीन स्मारक, भूमिका । ४७४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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