Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 487
________________ प्रभावना के अनेक कार्य किये । पुष्पदन्त नाम के ब्राह्मण कवि इन्हीं के समय में हुये हैं, जिन्होंने जैनधर्म ग्रहण कर लिया था । श्री कृष्णराज तृ० के राजमन्त्री भरत थे, जिनकी प्रार्थना पर इन्होंने 'महापुराण' नाम के ग्रन्थ की रचना की थी । 'हरिवंश' के रचयिता श्री धवल कवि भी इन्हीं के समय हुये थे । पोन्न नाम के प्रसिद्ध जैनकवि को कृष्णराज तृ० के दर्बार में बड़ा सम्मान प्राप्त था । महाराजा इन्द्रराज च० (६८२ ई०) पर तो जैनधर्म का इतना गाढ़ा रंग चढ़ा हुआ था कि जैन साधु होकर श्रवणबेलगोल पर्वत पर ऐसा कठोर तप किया, कि जिसे देखकर स्वर्ग के इन्द्र भी चकित रह गये' । इस प्रकार प्र० साधूराम शर्मा के शब्दों में राष्ट्रकूटराज्य (७५४-६७४ ई०) जैनधर्म की प्रभावना का समय था । १२. राठौड़वंशी राजाओं ने हथूड़ी (राजपुताना) में दशवीं शताल्दी में राज्य किया है, जिसके प्रथम सम्राट् हरिवर्मा थे । इनके पुत्र विदग्धराज ( ६१६) जैनधर्मी थे जिन्होंने अपनी राजधानी में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी का मन्दिर बनवाया था और उनकी पूजा के लिये भूमि भेंट की थी । इनके पुत्र महाराजा मम्मट (६३६) ने भी इस जैनमन्दिर को दान दिया था । इनके पुत्र महाराजा धवल भी जैनधर्मी थे' इन्होंने जैनमन्दिर की मरम्मत कराई और हर प्रकार से जैनधर्म की प्रभावना में सहयोग दिया " । इन्होंने श्री १. With an undisturbed mind performing Jain vows, Indraja gained the glory of the Kings of all Gods. — Ep. car. XII, 27. P. 92. 2. The Age of Rastrakutas was a period of great activity among the Jains, -J & K Culture. P 29. ३- ८ King Vidgdharaj was Jain. He built a temple of Rishabhadeva at Hathundi and made a gift of land to it. His son Mammata also made a grant for this temple. His son Dhaval was also a Jain. He renovated the Jain temple and helped in every way to glorify Jainism. — Reu. loc. cit. III. P. 91. [ ४६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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