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तरह के चालुक्यवंशी राजाओं ने हर समय जैनधर्म की प्रभावना को' और Smith के शब्दों में वे निश्चित् रूप से जैनधर्म के बड़े अनुरागी रहे।
राष्ट्रकूट वंशी नरेश बड़े योद्धा वीर और चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे । महाराजा दन्ति दुर्ग द्वि० (७४५-७५६ ई०) जैनधर्म प्रेमो थे । इनके पुत्र कृष्णराज प्र० (७५६-७७५ ई०) पर जैन आचार्य श्री अकलङ्कदेव जी का गहरा प्रभाव था । गोविन्दराज तृ० तो इतने योद्धा थे कि शत्रु उनके भय से कांपते थे । जिसके कारण ये 'शत्रु भयंकर' नाम से प्रसिद्ध थे। ये जैन साधुओं का पड़ा पक्ष करते थे । इनके समय के जैनाचार्य श्री विमलचन्द्र जी इतने महाविद्वान थे कि इन्होंने इनके महल पर नोटिस लगा दिया था कि यदि किसी भी धर्म का विद्वान् चाहे तो मुझसे शास्त्रार्थ करले । इन्होंने जैन-मुनि श्री अरिकीर्ति जो को जैनधर्म की प्रभावना के लिये दान दिये थे । इनके पुत्र अमोघवर्ष प्र० (८१४-८७७ ई०) जैनधर्मी'' और 'आदि पुराण' के लेखक जैनाचार्य श्री जिनसेन जी के शिष्य थे। धवल व जयधवल
आदि जैन-फिलौस्फी के प्रसिद्ध महान्ग्रन्थों की टोकाएँ इन्हीं के समय हई थी २ । जैनाचार्य श्री उग्रादित्य ने भी अपने 'कल्याणकारक' १. “The Chalukayas of whatever branch or age, were
consistently patrons of Jainism."-Prof, Sharma :
J & Karnataka Culture. P 29. à The Chakukays were without doubt great suppor
ters of Jainism"-Smith Early Hist, of India. P.444. ३.४ some Historical Jain Kings & Heroes. P. 40-43. ५. Hiralal, cat. of Mss. in C. P. & Berar. Int., J. & K.
Culture P. 31. ६-g. EPCar. IX P. 43,Med, Jainism 36, SHJK& H 43-44 १०, Amoghavarsha was the greatest patron of Jainism
and that he himself adopted the JAIN FAITH seems true'. Bom. Gag. I 88 P. 28 & Early History
of Deccan. P. 95. ११-१२. Some Historical Jain Kings & Heroes P. 45-46. ४५८ ]
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