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जैनधर्म और भारत के सम्राट श्री वर्द्धमान महावीर के समय (६०० ई० पू०) से ऐतिहासिक काल का आरम्भ होना स्वीकार किया जाता है । ऐतिहासिक काल से पहले जैन राजाओं का कथन “२४ तीर्थङ्कर और भारत के महापुरुष" में और वोर समय के कुछ जैन राजाओं पर जैनधर्म का प्रभाव “वीर विहार और धर्म प्रचार" में चुका है। यहां ऐतिहासिक काल के कुछ राजाओं पर जैनधर्म का प्रभाव देखियेः
शिशुनागवंशी सम्राट श्रेणिक बिम्बसार थे। ये महाराजा उपश्रेणिक के पुत्र थे, इनकी पटरानी चेलना'जैनधर्मी थी,जिसके प्रभाव से ये बौद्धधर्म को छोड़ कर जैनधर्म अनुरागी होगये थे' । अपना भ्रम मिटाने के लिये इन्होंने भ०महावीर से हजारों प्रश्न किये जिसके उत्तर से इनकी रहीसही शङ्कायें भी दूर हो गई थीं और ये सम्यगदृष्टि जैनी होगये थे । इनके पुत्र अभयकुमार वीर-प्रभाव से जैन साधु होगये तो श्रेणिक के दूसरे पुत्र अजातशत्रु मगध के युवराज होगय थे परन्तु अङ्गदेश विजय करने के कारण श्रोणिक ने इनको वहाँ का राज्य दे दिया था। भागलपुर के निकट चम्पापुरी इनकी राजधानी थी इस लिये इनको चम्पापुरी-नरेश कहा जाता था। ये बहुत बड़े सम्राट और व्रती जैन श्रावक थे । हेमाङ्गदेश के प्रसिद्ध सम्राट् महाराजा जीवनधर भी जैनधर्मी थे, जो मनुष्य तो क्या पशुओं तक के कल्याण में आनन्द मानते थे। एक कुत्ते को दुःखी देखा तो उसे णमोकारमन्त्र सुनाया, जिसके प्रभाव से १. Through the efforts of Chelana "Shrenika was converted
to Jainism from Buddhism.-Some H.J.K & H.P. 12. २; इसी ग्रन्थ के पृ० ३७३-३८४ ३. "Ajatshatru was a great monarch and petron of Jainas.
He took vows of a Jaina householder. -Cambridge History of Ancient India. Vol I. P. 261.
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