Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 468
________________ से जैन धर्म की खूब प्रभावना की थी। सम्प्रति जैनधर्मी' थे और जिनेन्द्र भगवान की पूजा के लिए इन्होंने हजारों जैन मन्दिर बनवाये और अधिक संख्या में तीर्थंकरों की मूर्तियाँ स्थापित कराई। इन्होंने जैन धर्म के प्रचार के लिये विदेशों तक में प्रचारक और जैन साधु भेजे । इन्हीं की भांति महाराजा सालिक जैनधर्मी सम्राट थे, जिन्होंने स्थान स्थान पर जैनधर्म का प्रचार किया । मौर्यवंशीय अन्तिम सम्राट वृहद्रथ भी जैनधर्मी थे , जिन को इनके सेनापति पुष्यमित्र ने धोखे से मार डाला था और स्वयं मगध का राजा बन बैठा था। ३२२ ई० पू० से १८५ ई० पू० १३७ साल तक मौर्य साम्राज्य में जैन धर्म का खूब प्रचार रहा। कलिङ्ग राजवंशीय सम्राट महामेघवाहन खारवेल का जन्म २०७ ई०पू० में हुआ। यह बड़े बलवान और जैनधर्मी सम्राट थे । पुष्यमित्र अश्वमेधयज्ञ के प्रबंध में था, इन्होंने रोका वह न माना तो मगधपर चढ़ाई करदी पुष्यमित्र हार मानकर खारवेल के चरणों में गिर पड़ा और उनकी पराधीनता स्वीकार करली। इन्होंने दिगविजय की थी और भारत नैपोलियन कहलाते थे । यह भगवान १-२. Samprati was a great Jain monarch and a staunch supporter of the faith. He erected thousands of Jain temples throughout the length & breadth of his empire and consecreted. large number of images. He sent Jain missionaries and ascetics abroad to preach Jainism in the distant countries and to spread the faith there -Epitome of Jainism, Jain Siddhanta Bhaskara. Vol. XVI. P. 114-117 3. “Salisuka preached Jainism far and wide.”—J.B.&0. Research Society. Vol. XVI. 29. ४-५ पं० अयोध्याप्रसाद गोयली : जैन वीरों का इतिहास और हमारा पतन पृ. ६७ ६. (क) डा० ताराचन्द : अहले हिन्द की मुख्तसर तवारीख (१९३४) पृ० ८२ (ख) पं० भगवद्दत्त शर्माः भारतवर्ष का इतिहास, भा० १ पृ० ५७ (ग) अनेकान्त वर्ष १ पृ० ३००, जैनहितैषि वर्ष १५अक ३, हाथीगुफा शिलालेख Jain temples, the faith. W monarch an ४४२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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