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महावीर के दृढ़ उपासक थे' और कुमारी पर्वत पर इन्होंने जैनत्रत धारे थे । यह जिनेन्द्र भगवान में इतना अधिक अनुराग रखते थे कि इन्होंने जिनेन्द्रदेव की पूजा के लिते जैन मन्दिर और जैन साधुओं के लिये गुफायें बनवाई। यही नहीं बल्कि १७२ ई० पू० में जैनधर्म की प्रभावना के लिये पञ्चकल्याणक पूजा कराई । मालवा के राजा गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य बड़े प्रसिद्ध सम्राट थे। शकों को इन्होंने ही हराया था । इनका विक्रमी सम्वत् भ० महावीर के निर्वाण के ४७० साल बाद ५७ ई० में चालू हुआ था । यह हिन्दूसंसार में प्रख्यात हैं पहले यह शैव थे, परन्तु जैनधर्म के सत्यप्रभाव से यह जैनधर्म-भक्त होगये थे । ४ महाराजा विक्रमादित्य जैनधर्मी और आदर्श आवक थे । जैन साहित्य में भी इन को एक ठोस
महाराजा विक्रमादित्य
स्थान प्राप्त है । १-३ Pushyamitra celebrated Ashvamedha Sacrifice. Kharavela reached Magadha to fight with him but Pushyamitra did homage instantly at the feet of Kharavela. He returned after taking the dignity of Emperor. Kharavela was a true 'upasaka' of Mahavira He celebrated 5 Kalyanakas of 'Jinendra' and built various caves and Jain temples. SHJK & Heroes.P.26, ४-५ जैनमित्र, सूरत (१६ दिसम्बर १९४३) वर्ष ४५ पृ० ७७ व मई १६४४, अन्तिम अङ्क । गुजराती मासिक 'जीवदया' व±बई, अक्तूबर १९४३ । संक्षिप्त जैन इतिहास भा० २ खण्ड २ पृ० ६६ । वीर वर्ष ६ पृ० २५८ ।
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