________________
राजा माधव द्वि० जैनधर्मी थे. इन्होंने जैनधर्म की प्रभावना के लिए जैनियों को बड़े बड़े दान दिये' । इनके पुत्र कोङ्गिणि द्विः के उत्तराधिकारी महाराजा अविनीत भी निश्चितरूप से जैनधर्मी थे, ये जैनाचार्य श्री विजयनन्दी के शिष्य थे। बचपन से ही इनको यह दृढ़ विश्वास था कि जो जिनेन्द्र भगवान की शरण ग्रहण कर लेता है वह हर प्रकार की वाधा और आपत्ति से मुक्त रहता है । एक समय उन्हें, दरिया पार करने की आवश्यकता पड़ी। नाव का कुछ प्रबन्ध न था यह विश्वास करके कि यदि जिनेन्द्र भगवान का छत्र साया होगा तो अथाह जल भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं कर सकता, वे जिनेन्द्र भगवान की मूर्ति को अपने सिर पर रखकर दरिया में कूद पड़े और सबको चकित करते हुये बात की बात में गहरे जल को चीरते हुये दरिया को पार कर लिया । इन्होंने जिनेन्द्र भगवान की पूजा के लिये जैन मन्दिरों को बहुत से गाँव भेंट किये। इनका पुत्र महाराजा दर्विनीत जैनाचार्य श्री पूज्यपाद जी के शिष्य थे । इनके पुत्र मुष्कर तो इतने सच्चे जैन धर्मी थे कि इनके समय जैन धर्म, राज्यधर्म (STATE RELIGION) था । गंगावंशी सम्राट श्रीपुरुष ने जैनधर्म की f. Madho II, father of Konguni II is claimed to have
been jain. He made grants to Digambars.-Shesha
giri Rao. Studies in S.I.J. II. P 87. 2-Avipita was undoubtedly a Jain. Tradition mentions
that while young Avioita once swam accross the Kaveri, when it was in full flood, with the image of a "Jina' on his head in all safety. He was brought up under the care of the Jain Sage Vijavanaodi, who was his preceptor,
-SHJK & Heroes, P. 30. 4. Avinita made a number of grants for Jain temples in
Punnad and other places. SHJK & Heroes. P 30. ६-७ Durvinita is described as the disciple of the famous
Taina teacher Pujyapada. Under his son Muskara jainlsm is said to have become STATE RELIGION.
- Ramaswami Aiyangar,Studies in S. I.J.Vol.I. P.110. ४५० ]
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com