Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 481
________________ (Pillar of Jainism ) कहा जाता था' । इन्होंने जिनेन्द्र भगवान की भक्ति के लिये जैन मन्दिर बनवाये और उनके खर्चे तथा प्रभावना के लिये अम्म द्वि ने गांव भेंट किये । महाराजा विमलादित्य (१०२२ ई०) त्रिकाला योगी सिद्धान्त श्री देशगना D 3 चार्य के शिष्य और जैन धर्म के भक्त थे को जिनेन्द्र भगवान की पूजा के लिए गाँव । इन्होंने जैन मन्दिरों भेंट किये थे । - ५ पश्चिमीय चालुक्य वंश के महाराजा तैलप द्वि० (६७३६६७ ई०) जैन धर्म के दृढ विश्वासी थे । जैनकवि श्री रन्न जी की रचनाओं से प्रसन्न होकर इन्होंने इनको 'कविरत्न', 'कविकुञ्जरांकुरा, 'उभयभाषाकवि' आदि अनेक पदवियां प्रदान की थी' । ये राज्यमान्य कवि थे । राजा की ओर से स्वर्णदण्ड, चंवर, छत्र, हाथी आदि उनके साथ चलते थे । महाराजा तैलप के सेनापति मल्लप की पुत्री अतिमव्वे के लिये इन्होंने ६६३ ई० में अजितनाथ पुराण रचा था, जिस से प्रसन्न होकर तैलप ने उन्हें 'कवि चक्रवर्ती' (King of Poets) की पदवी प्रदान की थी। अतिमव्वे जिनेन्द्र भगवान की भक्ति में इतना विश्वास रखती थी कि इसने जिनेन्द्र भगवान की हजारों सोने-चांदी की मूर्तियां स्थापित कराईं और जैन धर्म की प्रभावना के लिये इतने अधिक दान दिये कि वे ‘दानचिन्तामणी' कहलाती थी'" । तैलप के पुत्र सत्याश्रय हरिववेडेना (६६७ - २००६) जैनगुरु श्री विमलचन्द्र पंडितदेव के १-३ Ind, Hist, Quat. XI P. 40, Ep. Ind. IX P.50, SHJK.. & Heroes . P. 66. ४-५ संक्षिप्त जैन इतिहास, भा० ३ खण्ड ३ पृ० २७ ६. “Tailapa II had a strong attachment for the religion of ‘Jinas:—SH JK & Heroes P. 68. ज्ञानोदय वर्ष २ पृ० ७०६ ७- ११ सं० जैन इतिहास, भा० ३, खण्ड ३, पृ० १५७ - १५८. [ ४५५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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