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कोल्हू में पिडवा दिये जाओगे। अकलङ्कदेव ने कहा कि यदि तुम हार गये तो ? बौद्ध गुरु बोले कि हम देश निकाला ले लेंगे । शास्त्रार्थ आरम्भ होगया । अकलङ्कदेव महाविद्वान् और स्याद्वादी थे । निरन्तर ६ माह तक वाद-विवाद होने पर भी विजय प्राप्त न हुई तो उन्हें ज्ञात हुआ कि बौद्धगुरु ने देवी सिद्ध कर रखी है और वह ही परदे में उनकी तरफ से उत्तर देती है । देवी एक बात को एक बार ही कहती थी । अकलङ्कदेव ने बौद्ध-गुरु से कहा कि मैं नहीं समझा दूसरी बार कहो; तो देवी चुप थी । बौद्ध-गुरु से जवाब बन न पड़ा और अकलङ्कदेव की विजय हुई । जिसके कारण बौद्धों को देश छोड़कर लंका आदि की तरफ़ जाना पड़ा ।' जैन धर्म की अधिक प्रभावना हुई । राजा हिमशीतल ने जैनधर्म ग्रहण कर लिया और जनता भी बहुत बड़ी संख्या में जैनधर्मी होगई | चीनी यात्री Hieun Tsang ने यहाँ जैनियों तथा इन के मन्दिरों और जैन साधुओं के रहने की गुफाओं को अधिक संख्या में बताया है और यह लिखा है कि पल्लव - राज्य में जैन धर्म की खूब प्रभावना थी ।
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कदम्बावंशी राजा ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे फिर भी वे जिनेन्द्र अथवा अर्हन्तदेव की भक्ति में दृढ विश्वास रखते थे ।
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१-२, “Inscription at Sravanbelgola alludes that Aklankadeva defeated Buddhist antagonists in a great religious controversy held at the court of the Buddhist King Himshitala of the Pallava dynasty, who ruled at Kanchi. The effect of this great victory was decided augmentation of the prestige of the Jains while the Buddhists were excommunicated to Candy in Ceylon. Hieun Tsang, who visited Kanchi as early as 640 A. D. notices that Jainism enjoyed full toleration under the Pallava Govt." Digamber Jain. (Surat ) Vol. IX P. 71.
३. Journal of the Mythic Society Vol. XXII P. 61.
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