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महानन्द और महापम पराक्रमी सम्राट् हुए हैं । इनके बाद अन्तिम सम्राट नान्दराज भी बड़े वीर और जैनधर्मी थे ।
मौर्य साम्राज्य के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्मी थे',जो अन्तिम केवली जैनाचार्य श्री भद्रवाई के शिष्य थे और इनके ही प्रभाव से वह जैन साधु होगये थे । दक्षिण भारत के जिस पर्वत पर इन्होंने तप किया था, वह इनके नाम पर आज तक चन्द्रगिरि के नाम से प्रसिद्ध है। इनके पुत्र बिन्दुसार भी जैनधर्मी थे । इनके पुत्र महाराजा अशोक को बौद्ध धर्मानुयायी बौद्ध ग्रन्थों के आधार पर प्रकट किया जाता है, परन्तु इनको मि० विसेन्ट स्मिथ शेखचिल्ली की कहानियों से अधिक महत्व नहीं देते, यद्यपि वह अशोक को बौद्ध धर्मानुयायी मानते थे। प्रो० भाण्डारकर भी बौद्ध कथानकों में ऐतिहासिक सत्य नहीं के बरावर मानते हैं । १. जैन वीरों का इतिहास (जैन मित्र मण्डल, धर्मपुरा, देहली) पृ० २६ । २. a. Smith's Early History of India (Revised)P. 154. ___b. Epigraphia Carnatica Vol. II. Introd. P. 36-40,
c. Journal of Royal Asiatic Society. Vol. I. P. 176. d. Cambridge History of India Vol I P. 484. e. Journal of the Mythic Society. Vol. XVII. P. 272. f. Indian Antiquary, Vol. XXI. P. 50-60.
g. Journal B & 0. Research Society Vol, 13 P. 24, ३. "We shall have to come to the conclusion that Chandra.
Gupta, the disciple of the sage Bhadrabbaw was done
other than the celebrated Morya Emperor." Ep. Car II. ४. “I am now disposed to believe that Chandra Gupta really
abdicated and became Jaina ascetic. Smith's Hist. P. 146. ५. विश्वकोष. भा० ७ पृ० १५७ । ६. Ashoka. P. 19 and 23 quoted in जैनधर्म और सम्राट अशोक, पृ० ७ ७. भण्डारकर का अशोक पृ० ६६ ।
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