Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 464
________________ विश्वास' अवश्य भ० महावीर के प्रभाव का फल है। यही कारण है कि दूसरा मत स्थापित करने पर भी महात्मा बुद्ध ने भ० महावीर की सर्वज्ञता (omniscience) को स्वीकार किया और बौद्धग्रन्थों में उनका प्रशंसारूप कथन है । निश्चितरूप से म० बुद्ध पर भ० महावीर का अधिक प्रभाव पड़ा, जिसके कारण वीर प्रचार के समय म० बुद्ध की घटनाओं का हाल नहीं के बराबर (Almost Blank) मिलता है और महात्मा बुद्ध ने इतनी बातें जैनधर्म से ली, कि डा० जैकोबो को जैनधर्म, बौद्धधर्म की माता और लोकमान्य पं० बालगङ्गाधर तिलक को म० बुद्ध भ० महावीर के शिष्य स्वीकार करना पड़ा । विद्वानों का कथन है कि जैनधर्म बौद्ध धर्म से नहीं बल्कि बौद्धधर्म जैनधर्म से निकला है । नन्दवंशी सम्राट नन्दिवद्धन(४४६-४०६ ई.पू.)बड़े योद्धा और जैनधर्मी थे इन्होंने अनेक देश विजय किये। इनके समान ही १. "Nirvan is the highest Happiness".-Dhammapade. 204. २-३. इसी ग्रन्थ का पृ० ४८ व फुटनोट नं० ३ से १३ पृ० ३३१। : 8. K. J. Sounderson : Gotma Buddha. P. 54. ५. “He (Budddha) must have borrowed Jain doctrines." Prof. Sil :J.H.M. (Nov 1926 ). P. 2. ६. "Jainism is mother of Buddhism". Dr. H, Jacobi: Dig. Jain (Surat) Vol. X P. 48. ७. जैनधर्म महत्व भा० १ (सूरत) पृ० ८३ । “Authorities like Colebrooke and Dr. E. Thomas beld that it was Buddhism which was derived from and was an off:shoot of Jainism''. Shri Joti Pd : Jain Antiquary. Vol. XVIII P.56 ६. i. Cambridge History of India. Vol. I. P. 161. ___ii. J.B. & O.R. Society, Vol. IV P. 163 &Vol. 13. P.245. ४३८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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