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कुत्ता स्वर्ग में देव हुआ । यह भ० महावीर के निकट जैन साधु होगये थे । शांक्यावंशी, कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के राजकुमार महात्मा बुद्ध भगवान महावीर के समकालीन थे । Bhandarkar के शब्दों में महात्मा बुद्ध कुछ समय जैन साधु भी रहे । जैनाचार्य श्री देवसेन जी ने दर्शनसार में बताया कि बुद्धकीर्त्ति नाम के जैन मुनि जैन-धर्म त्यागकर बौद्धधर्मी होगये थे:
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श्री महात्मा बुद्ध
"सिरिपासाहतित्थे सरयूनीरे पलासगयरत्थो । पिहिया सवस्स सिस्सो मह । सुदो बुद्ध कत्तिमुखी ||६|| तिमिपूरणा सहिं अहिगय पबजाओ परिब्मदो । रत्तं बरं धरिता पवट्टियं तेण एदांतं ||७|| मंसस्स पत्थि जीवो जहाफले दहिय दुद्ध सक्करए ।
तम्हा तं वंछित्ता तं भक्खंत्तो ण पतिठ्ठो” ||८|| - दर्शनसार
जैनधर्म की चर्या को ग्रहण करना स्वयं महात्मा बुद्ध स्वीकार करते हैं
" वहां सारिपुत्र ! मेरी यह तपस्विता थी— अचेलक (नग्न) था | मुक्ताचार, हस्तावलेखन हथचट्टा), नष्ट हिमादन्तिक ( बुलाई भिक्षा का त्यागी), न तिष्ट-भदन्तिक (ठहरिये कह दी गई भिक्षा को), न अपने उद्देश्य से किए गए को और न निमन्त्रण को खाता था । न मछली, न मांस, न सुरा पीता था । ...... शाकाहारी था । 'केश दाढ़ी नोचनेवाला था ।" - मज्झिम०नि०, १२१२ (हिन्दी) पृ० ४८-४६ 2. "Jivandhara became disciple of Mahavira and lived according to his precepts."-Some H. J. K. & H., P 9. 3. "Mabatma Buddha was a Jain monk for some time,' Prof. Bhandarkar: J. H. M, Allahabad (Feb. 1925), P 25
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