Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 452
________________ गुजरात पर हमला किया तो इन दोनों ने घमसान युद्ध करके उस पर विजय प्राप्त की । देहली के बादशाह अल्तमश ने गुजरात पर हमला करने का इरादा ही किया था कि इन्होंने उसके दांत खट्टे कर दिये। संसार को चकित करने वाले आबू पर्वत पर करोड़ों रुपयों की लागत के अत्यन्त सुन्दर जैन मन्दिर इन्होंने ही बनवाये हैं। मुसलमानों ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया । वहाँ के सेनापति आबू ब्रती श्रावक थे, जो नितनेम प्रतिक्रमण करते थे। शत्रओं से लड़ते २ उनके प्रतिक्रमण का समय होगया, जिस के लिए उन्होंने एकान्त स्थान पर जाना चाहा, मुसलमानों की जबर्दस्त सेना के सामने अपनी मुट्ठी भर फौज के पाव उखड़ते देख कर राष्ट्रीय सेवा के कारण रणभूमि को छोड़ना उचित न जाना और दोनों हाथों में तलवार लिये हौदे पर बैठे हुए ही युद्ध भूमि में प्रतिक्रमण आरम्भ कर दिया, जिस में आये हुए 'जेमे जीवा विराहिया एगिंदिया बेई. दिया' आदि शब्दों को सुन कर सेना के सरदार चौंक उठे कि देखिये "सेनापति जी-रणभूमि में भी जहां तलवारों की खनाखनी और मारों मारों के भयानक शब्दों के सिवाय कुछ सुनाई नहीं देता, एकेन्द्रिय दो इन्द्रिय जीवों तक से क्षमा चाह रहे हैं। ये नरम नरम हलुवा खाने वाले जैनी क्या वीरता दिखा सकते हैं" ? प्रतिक्रमण समाप्त होने पर सेनापति ने शत्रुओं के सरदार को ललकारा: श्रा इधर श्रा, हाथ में तलवार ले, खांडा सँभाल । वीरता अपनी दिखा, होश कर, मन की निकाल | . धर्म का पालन किया हो, तो धर्म की शक्ति दिखा। वरन् अपनी जां बचा कर फौरन यहां से भागजा॥ शत्रुओं का सरदार उत्तर भी देने न पाया था कि जैन सेनापति आबू ने इस वीरता और योग्यता से हमला किया कि शत्रुओं के ४२६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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