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गङ्गवंशी नरेश राचमल्ल के सेनापति चामुंडराय जैनाचार्य नेमचन्द्रजी के शिष्य
थे
श्रवणवेल
गोल में बहुत से जैन
मन्दिर और जैन
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तपस्वी बाहुबली जी की साढ़े- छप्पन फुट ऊँची विशाल मूर्त्ति जिसको देख कर संसार आश्चर्य करता
है, इन्हीं की धर्म प्रभावनाका फल है । यह बड़े सुन्दर कवि
जैन-योद्धा चामुण्डराय
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और प्राकृत संस्कृत आदि अनेक भाषाओं के विद्वान् भी थे । जैन धर्म पर इन्होंने चामुण्डपुराण नाम का अनुपम ग्रन्थ लिखा है | यह धर्मवीर और कमवीर के साथ युद्धवीर भी थे । इस जैन वीर ने अपने देश की कितनी सेवा की इस बात का अन्दाजा इनकी पदवियों से लगाया जा सकता है :
१. 'वीर - धुरन्धर' जो बजुलदेव को विजय करने पर मिली ।
२. 'धीर - पार्तण्ड' जो कोलम्बो युद्ध जीतने पर मिली ।
३. 'रणराजसिंह' उच्छङ्गों के किले में राजादित्यको हरानेपर मिली ।
2-3. Prof. S. R. Sharma Jainism & Karnatka Culture, P. 19.
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