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यह जैन साधु होगये थे । कुछ समय बाद भागीरथ भी जैन साधु होकर कैलाश पर्वत पर गङ्गा के किनारे तप करने लगे । यह इतने महान तपस्वी थे कि इनका कैलाश पर्वत पर देवों ने अभिषेक किया, जिस का जल गङ्गा जी में मिलने के कारण गङ्गा जी को आजतक पवित्र माना जाता है और उन जैन मुनि के नाम पर गङ्गाजी का नाम 'भागीरथीजी' पड़ गया । जितशत्रु नाम के दूसरे रुद्र इनके ही समय में हुए हैं ।
३. श्री संभवनाथ जी श्रावस्ती के राजा जितगिरि के पुत्र थे । ४. श्री अभिनन्दननाथ जी अयोध्या के राजा संवर के पुत्र थे । ५. श्री सुमतिनाथ जी भी अयोध्या के राजा मेघप्रभु के पुत्र थे, जिनका कथन विष्णुपुराण में भी है ६ ।
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६. श्री पद्मप्रभु जी कौशाम्बी के राजा धरणनृप के पुत्र थे ७. श्री सुपार्श्वनाथ जी बनारस के राजा सुप्रतिष्ठित के पुत्र श्री चन्द्रप्रभु जी चन्द्रपुरी के राजा महासेन के पुत्र थे । पुष्पदन्त जी काकन्दी के राजा सुग्रीव के पुत्र थे। रुद्र नाम का तीसरा रुद्र इन के ही समय में हुआ ।
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१०. श्री शीतलनाथ जी भद्रिकापुरी के राजा दृढ़रथ के पुत्र थे । विश्वानल नाम के चौथे रुद्र इन के ही तीर्थकाल में हुए थे I ११. श्री श्रेयांसनाथ जी सिंहपुरी के सम्राट् विष्णु नृप के पुत्र थे । तृपृष्ट नाम के प्रथम नारायण, अश्वग्रीव नाम के प्रीतनारायण, विजय नाम के बलभद्र और सुप्रतिष्ट नाम के पांचों रुद्र इनके समय में हुए हैं ।
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१-५. hri Kamta Pd : Bhugwan Mahavira ( First Edition) P 3I. ६. Indian Quaterly, Vol. IX P. 163,
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