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मछलियां मारने का पापी है। और हिंसक भाव न होने पर किसी को बाधा भी हो तो वह अहिंसा है, जैसे डाक्टर जखम को चीर' कर महाकष्ट देने पर भी हिंसा का दोषी नहीं है । इस लिये जैन धर्म जहाँ राग द्वष के वश होकर एक कीड़ी तक के मारने को पाप बताता है वहां देश-सेवा, परोपकारिता, अवला स्त्रियों की गुण्डों से रक्षा करने, अत्याचारों को मेटने, अपराधियों को दण्ड देने और देश को शत्रुओं से बचाने में लाखों तो क्या करोड़ों जीवों की हिंमा होजाय तो वह जैनधर्म के अनुसार एक गृहस्थी के लिये हिंसा नहीं है' । क्योंकि अत्याचारों को मेटते समय परिणाम कषायरूपी नहीं हाते बल्कि अभयदान के अहिंसामय विचार होते हैं, अभय दान देना जैनधर्म में श्रावक का कर्त्तव्य है और कर्तव्य के पालने में जो हिंसा होती है वह हिंसा नहीं है बल्कि हिंसा को मेटने वाली अहिंसा है। ____ अनेक विद्वानों को यह भ्रम है कि युद्ध लड़ना ही वीरता है
और जैन धर्म युद्ध की शिक्षा नहीं देता यह कल्पना भी झूठी है क्योंकि ऋषभदेव जी ने सैनिक जैनियों के लिये न केवल मुख्य कर्त्तव्य बल्कि प्रथमधर्म बताया है । जीवन और धन किसको प्यारा नहीं ? परन्तु जैनधर्म तो सच्चा जैनी उसे ही बताता है, "जो अवसर पड़ने पर धन और जीवन दोनों का बलिदान कर
१. अध्नन्नपि भवेत्पापी निघ्नन्नपि न पापभाक् । अभिघ्नयान विशेषेण यथा धीवरकर्षकौ ॥
-यशस्तिलकचम्पू । २, दीनाभ्युद्धरणे बुद्धिः कारुण्यं करुणात्मनान् ।। -यशस्तिलकचम्पू । ३. निरर्थकवधत्यागेन क्षत्रिया वतिनो मताः । -जैनाचार्य श्री सोमदेव । ४. असिमषिः कृषिविद्या वाणिज्यं शिल्पमेव च । काणीमानि षोडाः स्यूः प्रजाजीवन हेतवे ॥
-जैनाचार्य श्री जिनसेन जो. आदिपुराण पर्व १६ ।
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