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ग्रन्थ' तथा महाभारतआदि अनेक ग्रन्थों में प्रशंसायोग्य मिलता है । सात्यकी नाम के ११ वें रुद्र इन्हीं के तीथंकाल में हुए हैं। इनका अपने समय के राजाओं पर कितना प्रभाव था यह बात इसी ग्रन्थ के दूसरे खण्ड में प्रगट है। यह भी ऐतिहासिक महापुरुष हैं । इनका धार्मिक, सामाजिक तथा ऐतिहासिक क्षेत्र में इतना अधिक प्रभाव रहा कि पिछले २३ तीर्थङ्करों को भूल कर आज तक बहुत से विद्वान् . इनको ही जैन धर्म का संस्थापक समझते हैं। ___ यह सब तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण और रुद्र जैनधर्मी तथा ऐतिहासिक पुरुष हैं । एक तीर्थङ्कर से दूसरे का अन्तर समय तथा इन सबके हालात, स्थानाभाव से यहाँ संक्षिप्तरूप में भी नहीं दिये जा सके । यदि खोजी विद्वान चौबीसीपुराण, महापुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण आदि जैन ग्रंथों के स्वाध्याय का कष्ट करें तो प्राचीन से प्राचीन भारत का इतिहास जानने के लिये बड़ी उपयागी और विश्वासयोग्य सामग्री प्राप्त हो सकती है।
१. इसी ग्रन्थ के पृ० ४१. ४२, ४८ । २. वृषाही वृषभो विष्णुर्वृषा वृषोदरः। ___ वर्धनो वर्द्धमानश्च विविक्तः श्रतिसागरः ॥
-महाभारत महादेवसहस्त्र नाम अनुशासन पर्व अ० १४ । ३. i. Rice: Kanarese Literature. P.20.
ii. Religion of the Empire, P. 203 & E. R. E. Vol. VII
__P. 465. iii Er. Bool Chand: Lord Mahavira (JCRS. Banares)
P. 15. ४. यह सब छपे हुए ग्रन्थ हिन्दी में दि० जैनपुस्तकालय सूरत से प्राप्त होसकते हैं।
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