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बल्कि सारे संसार के समस्त प्राणियों का कल्याण करने वाले कर्मभूमि के आदिपुरुष थे, जिन्होंने आजीविका के साधन के लिये संसार को असि (शस्त्र) मसि (लेखन) कृषि (वाणिज्य) शिल्प (विद्या) की विधि सिखाई और अपने अपने कर्तव्य का पालन करने के लिये क्षत्रियादि वर्गों की स्थापना की। भलि भाँति प्रबन्ध करने के हेतु इन्होंने ही आयखण्ड के सुकौशल, अवन्ती, अङ्ग, बङ्ग, काशी, कलिंग. काश्मीर, वत्स, पंचाल. दशार्ण, मगध, बिदेह, सिंधु, गांधार, बाल्हीक आदि अनेक देशों में बांटा था । यह इतने पूजनोक हुए हैं कि प्राचीन से प्राचीन ग्रन्थां, वेदों और पुराणों तक में इनकी भक्ति, वन्दना और स्तुति का कथन है । ___ एक आर्यखण्ड और पांच म्लेच्छखण्ड, छहों खण्डों के स्वामी चक्रवर्ती सम्राट भरत जी, कि जिनके नामपर हमारा देश भारतवर्ष कहलाता है, इन्हीं ऋषभदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनके छोटे भाई श्री बाहुबली जी भी बड़े योद्धा और प्रसिद्ध तपस्वी हुए हैं। इनकी साढ़े छप्पन फुट ऊँची विशाल मूर्ति श्रवणबेलगोल (मैसूर) में संस्थापित है, जिसको बड़े-बड़े विद्वान् wonder of the world स्वीकार करते हैं। भरत जी और बाहुबलि जी दोनों श्री ऋषश्रदेव जी के निकट जैन साधु हो गये थे। भीमबली नाम का पहला रुद्र इनके ही तीर्थकाल में हुआ है।
२. अजितनाथ जी-अयोध्या के राजा जितशत्रु के पुत्र थे। यह भी इतने प्रभावशाली हुए हैं कि डा. राधाकृष्णन के शब्दों में यजुर्वेद में भी इनका कथन है' इनके केवल ज्ञान की पूजा दूसरे चक्रवर्ती सम्राट सागर ने की थी, जिस को डा० ताराचन्द मी एक बहुत बड़ा सम्राट स्वीकार करते हैं । श्री अजितनाथ जी के प्रभाव से राज्य अपने पुत्र भागीरथ को देकर १. Dr. Radhakrishnan: Indian Fhilosopbx. vol. I P, 287. २. डा. ताराचन्दः अहले हिन्द की मुखत्सर तारीख । ४१२ ]
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