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१२. श्री वासुपूज्य जी चम्पापुरी (भागलपुर ) के राजा नसुपूज्य के पुत्र थे। दूसरे नारायण द्विपृष्ट, प्रीतनागयण, तारक, बलभद्र अचल और छठे रुद्र इनके समय में हुए हैं। १३. श्री विमलनाथ जी कपिल के राजा कृतवर्मा के पुत्र थे । तीसरे नारायण स्वयंभू, प्रीतनारायण मधु, बलभद्र, सुधर्म और सातों रुद्र पुण्डरीक इनके ही जीवन काल में हुए। १४, श्री अनन्तनाथ जी अयोध्या के राजा सिंहसेन के पुत्र थे। चौथे नारायण पुरुषोत्तम, प्रतिनारायण मधुसूदन, बलभद्र सुप्रभ और आठवें रुद्र अजितधर इनके समय में हुए हैं। १५. श्री धर्मनाथ जी रत्नपरी के राजा भानुनृप के पुत्र थे । पुरुषसिंह नाम के पचवें नारायण, मधुकैटभ नाम के प्रतिनारायण, सुदर्शन नाम के बलभद्र, जितनाभी नाम के नौवें रुद्र इनके समय में और मघवा नामके तीसरे चक्रवर्ती सम्राट धर्मनाथ जी के मोक्ष जाने के बाद हुए । इनके बाद चौथे चक्रवर्ती सनत्कुमार भी धर्मनाथ जी के ही तीथेकाल में हुए हैं। १६. श्री शान्तिनाथ जो हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन के पुत्र थे । अहिंसा धर्म के तीथङ्कर होने के बावजूद छहों खण्डों के विजयी पांचवें चक्रवर्ती सम्राट और बारहवें कामदेव हुए हैं। पीठ नाम के दसवें रुद्र भी इनके समय में ही हुए हैं। १७. श्री कुन्थुनाथ जी भी हस्तनापुर के राजा सूरसेन के पुत्र थे। यह भी सारे संसार को युद्ध में जीतने वाले छठे चक्रवर्ती और तेरहवें कामदेव हुए हैं। १८ श्री अरहनाथ जी भी हस्तनापुर के राजा सुदर्शन के पुत्र थे। जब तक गृहस्थ में रहे समस्त संसार के शत्रु को वश में रखने वाले सातवें चक्रवर्ती थे और जब जैन साधु ४१४ ]
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