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कवियों की कीर श्रद्धाञ्जाल श्री वीर का समवशरण गिरि विपुला पर आयो है !
महाराज श्रेणिक को यह माली ने सुनाया है। . "श्री वीर का समवशरण गिरि विपुला पर आयो है" || तन के वस्त्र और आभूषण सब माली को दिये। वीर का विहार सुन इतना श्रेणिक हरसायो है ॥ श्रेणिक उतर सिंहासन से वीर प्रभु की ओर | सात पैड़ चल शीस सात वार नवायो है२ ॥ घोषणा कराई सारे देश में श्रेणिक ने । "चले जनता पूजन को, भगवान् वीर आयो है" ॥ ले चौरङ्गी फौज चले दर्शनों को ठाठ से । आज तिहुँ लोक में वीर यश छायो है ॥
-श्री ज्योतिप्रसाद 'प्रेमी' जान अवतार इन्द्र आयो परिवारयुक्त । करके हजार नेत्र रूप पे लुभायो है ॥ मेरु पै न्हवन कियो पुण्य कोष भर लिये । फिर शीस महावीर को भक्ति से नवायो है । साधुओं की शंकायें वीर-दर्शनों से दूर हों । विष भरे उरग के मान को नसायो है ॥ विषयों के भोग को रोग के समान जान । रहे बाल ब्रह्मचारी, ब्याह नहीं रचायो है ॥
-ब्रह्मचारी श्री प्रेगसामर जी
१-४ महाराजा श्रेणिक पर वीर-प्रभाव, खण्ड २ । ५-६ वीर-जन्म, खण्ड २ । ७-६ विस्तार के लिये इसी ग्रंथ का खण्ड २ ।
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