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बना रहना उचित नहीं । भील बोला- “महाराज ! मैं किसी का दास नहीं हूं भीलों का सरदार हूं ।" उसकी यह बात सुन कर साधु, हँस दिये और बोले - " अरे भोले जीव ! तू सरदार कहां हैं ? दो अंगुल की जीभ ने तुझे अपना दाम बना रखा है, जिसके स्वाद के लिये तू दूसरे जीवों के प्राण लेता फिरता है ।" भील चुप था | भीलनी ने कहा – “यदि खायें नहीं तो भूख से मर जायें ?" साधु बोले – “ भूख से किसी को न मरना चाहिये, किन्तु ध्यान यह रखना चाहिये कि अपनी भूख प्यास की ज्वाला मिटाने के लिये दूसरे जीवों को कष्ट न हो । अन्न, जल और फल खाकर भी मानव जीवित रह सकता है । पशु हत्या में हिंसा अधिक है। मांस मदिरा और मधु जीवों का पिंड है । इनके भक्षण से बड़ा पाप लगता है' आज ही इनका त्याग कर दो” । भील भीलनी ने स्थूल रूप से अहिंसा व्रत ग्रहण करके उनका पालन किया, जिसके पुण्य फल से भील सौंधर्म नाम के पहले स्वर्ग में देव हुआ । उसने दूसरों को सुखी बन या, इस लिये स्वर्ग के सुख उसे मिले ।
चक्रवर्ती - पुत्र
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स्वर्ग के भोग भोगने के बाद मैं अयोध्या नगरी में श्री ऋषभदेव के पुत्र प्रथम चक्रवर्ती भरत के मरीचि नाम का पुत्र हुआ । संसार को दुःखों की खान जान कर जब श्री ऋषभदेव जी ने जिन दीक्षा ली, तो कच्छ महाकच्छ आदि ४ हजार राजे भी उनके साथ दीक्षा लेकर जैन साधु होगये थे, तो मरीचि भी उनके साथ जैन साधु हो गया था ।
एक दिन अधिक गरमी पड़ रही थी, भूमि अंगारे के समान
१. आठ मूल गुण खण्ड १ में माँस का त्याग, मदिरा का त्याग, मधु का त्याग । जैन धर्म के संस्थापक श्री ऋषभदेव, खण्ड ३ ।
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भरत और भारतवर्ष, खण्ड ३ ।
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