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नारायण पद स्वर्ग के महा सुख भोग कर विशाखभूति का जीव इसी भारत क्षेत्र में सुरम्य देश के पोदनपुर नगर के प्रजापति नाम के राजा की जयावती नाम की रानी से विजय नाम का प्रथम बलभद्र हुआ और मैं विश्वनन्दो का जीव उसी राजा की मृगावती नाम की रानी से त्रिपृष्ट नाम का पहला नारायण हुआ। हम दोनों बड़े बलवान थे । पिछले जन्म के संस्कार के कारण हम दोनों का आपस में बड़ा प्रेम था। विशाखनन्दी का जीव अनेक कुगतियों के दुःख भोगता हुआ विजयार्द्ध पर्वत के उत्तर में अलकापुरी के राजा मयूरग्रीव की रानी नीलंजना के अश्वग्रीव नाम का प्रतिनारायण हुआ। यह बड़ा दुष्ट था, इसी कारण इस की प्रजा इससे दुखी थी।
विजयार्द्ध के उत्तर में ही रथनपर नाम के देश में एक चक्रवाक नाम की नगरी थी जिस का राजा ज्वलनजटी था, जिसकी रानो वायुवेगा थी जिसके स्वयंप्रभा नाम की पुत्री थी जिसके रूप को सुनकर अश्वग्रीव उससे विवाह कराना चाहता था । परन्तु ज्वलनजटी ने अपनी राजकुमारी का विवाह त्रिपृष्ट कुमार से कर दिया । जब अश्वग्रीव ने सुना तो अपने चक्र-रत्न के घमण्ड पर ज्वलनजटी पर आक्रमण कर दिया। खबर मिलने पर त्रिपृष्ट कुमार और उसका भ्राता विजय उसकी सहायता को आ गए । पहले तो दूत भेज कर अश्वग्रीव को समझाना चाहा, परन्तु वह न माना । जिस पर देश रक्षा के कारण इनको भी युद्ध भूमि में आना पड़ा। बड़े घमसान का युद्ध हुआ। अश्वग्रीव योद्धा था, उसके पास बड़ी भारी सेना थी। दूसरी ओर बेचारा ज्वलनजटी। शेर और बकरी का युद्ध क्या ? कई बार ज्वलनजटी की सेना के पांव उखड़ गए। मगर त्रिपृष्ट दोनों हाथों में तलवार लेकर इस वीरता से लड़ा कि अश्वग्रीव के दांत खट्र
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