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चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथ जी को शान्ति प्राप्त करने की विधि पूछी तो उन्होंने इस को 'अनन्त चौदश' के ब्रत देकर कहा कि भादों सुदि चौदश को हरसाल १४ साल तक उपवास रख कर चौदहवें तीर्थंकर का शुद्ध जल के चौदह कलशों से प्रक्षल कर के पूजन करो और चंवर, छत्र आदि १४ वस्तु, हर साल श्री जिनेन्द्र भगवान् की भेंट करो । इस ने चौदह साल तक ऐसा ही किया, जिस के पुण्य फल से यह इतना बुद्धिमान, धनवान् , रूपवान
और बलवान हुआ है। ___ श्रेणिक ने श्री वीर भगवान् से पूछा कि रक्षाबन्धन का त्योहार क्यों मनाया जाता है ? तो भगवान् की दिव्य ध्वनि से जाना कि बली, प्रह्लाद, नेमूचि और भरतपति नाम के चार मंत्रियों ने हस्तिनागपुर में नरयज्ञ के बहाने आचार्य श्री अकम्पन और इन के सङ्घ के सात सौ जैन मुनियों को भस्म करने के लिये अग्नि जला दी तो श्रावण सुदि पूर्णमाशी के दिन उनकी दीक्षा विष्णु जी नाम के मुनि द्वारा हुई थी इस लिये उन की रक्षा की यादगार मनाने के लिये उस दिन हर साल रक्षाबन्धन का त्योहार मनाया जाता है। ____महाराजा श्रेणिक ने फिर पूछा कि यज्ञ में जीव घात कब से
और क्यों होने लगा ? उत्तर में उन्होंने सुना-"अयोध्या नगरी में क्षीरकदम्ब नाम के उपाध्याय के पास पर्वत और नारद नाम के दो विद्यार्थी भी पढ़ते थे । एक दिन शास्त्र-चर्चा में पूजा का कथन
आया । नारद ने कहा कि पूजा का नाम यज्ञ है "अजैर्यष्टव्यम्" जिसमें अज यानो बोने से न उगने वाले शालि धान यव (जौ) से होम करना बताया है। पर्वत ने कहा, जिस में अज यानी छेला (बकरा) अलंभन हो उसका नाम यज्ञ है । पर्वत न माना उसने कहा
१. विस्तार के लिये रक्षाबन्धन कथा (दि० जैन पुस्तकालय, सूरत) मू० ।)
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