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के पारगामी श्री धरसैन जी नाम के महान आचार्य हुए, कि जिनके श्री पुष्पदन्त और भी भूतबलि नाम के शिष्य महाविद्वान थे, जिन्होंने श्रुत विनष्ट होने के भय से धर्म प्रभृति को छः खण्डों में षटखंडागम' नाम के राजग्रन्थ (धवल२, जयधवल, महाधवल' इसकी टीकाएँ हैं) की वीर निर्वाण से ७२३ वर्ष बाद (१६६ ई०) में रचा, जो जेठ सुदी पंचमी के दिन पूर्ण हुआ था, जिसके कारण वह दिन 'श्रुतपंचमी' कहलाता है । उस दिन सब संघों ने मिल कर जिनवाणी की पूजा की थी, जिसकी स्मृति में श्रावक अाज भी उत्साह से जिनवाणी की पूजा करके श्रुतपंचमी का पर्व मनाते हैं। ____ इनके बाद श्री कुन्दकुन्द, उमास्वामी, स्वामी समन्तभद्र, अकलङ्कदेव, पूज्यपाद नेमचन्द्र, शकटायन, जिनसेन. गुणभद्र, मातुङ्गाचार्य आदि अनेक ऐसे आदर्श मुनि हुए हैं, कि जिनका प्रभाव महान से महान सम्राट से अधिक और ज्ञान कालीदास से भी बहुत अधिक था। वीर-निर्वाण के हजारों साल बाद आज के पंचम काल में भी श्री शान्तिमागर जैसे तपस्वी नग्न मुनियों, श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैसे क्षुल्लकों, श्री कांजीस्वामी जी जैसे त्यागियों और अनेक अर्यिकाओं का दृढ़ता के साथ जैन धर्म का पालन करते हुए अपने उत्तम आदर्श, प्रभावशाली उपदेश
और अतिसुन्दर रचनाओं द्वारा समस्त जग के प्राणियों का बिना भेदभाव के कल्याण करना अवश्य वीरसंघ रूपी वृक्ष का ही मीठा फल है। १. घटखण्डागम (जैन साहित्योद्धारक फण्ड कार्यालयः अमरावती, पृ० ६४ । २. महाधवल भी महाबन्ध के नाम से छप चुका है, जिसके दोनों भाग २०) में ___ भारतीय ज्ञानपीठ. दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस ५, से प्राप्त होसकते हैं। ३ पण्डित जुगलकिशोरः समन्तभद्र (वीरसेवा मन्दिर. सरसावा) पृ० १६१ । ४-५. इसी ग्रन्थ के पृ० १६०, १६४-२००.
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