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श्वेताम्बर पड़ गया । इस प्रकार भद्रबाहुजी के बाद दिगम्बर और श्वेताम्बर दो भिन्न भिन्न सम्प्रदायें मानी गईं ' ।
भद्रबाहु जी के बाद विशाखदत्त, प्रौष्टिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजयसेन, बुद्धिमान, गङ्गदेव और धर्मसेन नाम के ११ महात्मा ग्यारह अंग और दश पूर्व के धारक हुए जिन्होंने १८३ साल तक वीर वाणी का प्रचार किया । इन के बाद नक्षत्र, जयपाल पांडु, द्रुमसेन और कंसाचार्य ५ महात्माओं ने २२० साल ग्यारह अंग के अध्ययन को स्थिर रक्खा । इनके बाढ़ सुभद्र, अभयभद्र, जयबाहु और लोहाचार्य पाँच मुनीश्वर आचारंग शास्त्र के महा विद्वान् हुए, जिन्होंने ११८ वर्ष अङ्गज्ञान का प्रचार किया । इस तरह भ० महावीर के निर्वाण से (६२+१००+१८३+२२० + ११८= ६८३ वर्ष बाद ( वीर संवत् ६८३) तथा सन् १५६ ई० तक अङ्गज्ञान का प्रचार रहा। इनके बाद विनयधर, श्रीदत्त, शिवदत्त और अर्हदत्त चार आरातीय मुनि चार अङ्ग पूर्व के कुछ भाग के ज्ञाता हुए इनके बाद अलि नाम के महात्मा हुए जो श्रङ्गपूर्वदेश के एक भाग के ज्ञाता थे, जिन्होंने नन्दि, देव, सैन और भद्र नाम से चार संघों की स्थापना की । इनके बाद माघनन्दि नाम के महामुनि हुए, जो अङ्गपूवदेश के ज्ञाता थे। इनके बाद काठियावाड़ देश में श्री गिरनार जी की चन्द्रगुफा में निवास करने वाले महातपस्वी, अष्टांग महानिमित्त
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going naked was abandoned. The ascetics began to wear the 'white robe'. It is much more likely, however, that the Swetambera Party originated about that time and not the Digambera,
— Miss. Stevenson Heart of Jainism, P 35.
भ० महावीर (कामताप्रसाद) पृ० ३२१-३२३ ।
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