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१२ साल तक धर्म प्रचार किया । इनके मोक्ष होने पर इनके प्रधान शिष्य सुधर्माचार्य ने सर्वज्ञ हो, १२ वर्ष तक जिनवाणी की अमृत वर्षा की' । इनके मुक्ति प्राप्त कर लेने पर इनके प्रधान शिष्य जंबू स्वामी तीनों लोकों को समस्त रूप से जानने वाले अन्तिम केवल ज्ञानी ने ३८ साल तक संपूर्ण श्रुतज्ञान का अवाधितरूप से प्रचार किया । इस प्रकार भ० महावीर के ६२ साल बाद तक सर्वज्ञ अर्हन्तों द्वारा जैन धर्म का प्रचार होता रहा' ।
जंबूस्वामी के बाद विष्णुमुनि, नंदिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु पांच महासाधु संपूर्ण श्रुतसमूह के पारगामी और द्वादशांग के पाठक श्रुतकंवली हुए जिन्होंने १०० वर्षे तक धर्मोंपदेश दिया ६ प्रसिद्ध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य इन्हीं भद्रबाहु जी के शिष्य थे । जिनके शासनकाल तक जैन संघ में दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों का कोई भेद न था । इसीलिये दोनों सम्प्रदायों के शास्त्र भद्रबाहु जी को अन्तिम श्रुतकेवली मानने में एकमत हैं । उस समय मगध और उसके आस पास बारह वर्ष का अकाल पड़ गया था, जिसके कारण उत्तर भारत में अन्न वस्त्र के लाले पड़ गये थे | भद्रबाहु स्वामी ने अपने ज्ञान से को विचार कर, संघ सहित दक्षिण भारत की ओर सम्राट चन्द्रगुप्त भी जो उनके प्रभाव से जैन साधु हो गये थे, उनके संघ के साथ मैसूर प्रान्तर्गत कटवप्र पर्वत पर चले गये, जो उनके तप करने के कारण उनके नाम पर चन्द्रगिरि कहलाने लगा । वहां से जब संघ लौटकर उत्तर भारत आया तो देखा कि दुष्काल की कठिनाइयों ने उत्तर भारत में रहे हुये निर्ग्रन्थ श्रमणों को शिथि -, लाचारी बना दिया - श्वेत वस्त्र धारण करने से उनका नाम
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ऐसे दुष्काल विहार किया ।
१- ६. जैनाचार्य (सूरत) पृ० १-३ ।
७-६ जैन शिलालेख संग्रह श्रवणबेलगोल भूमिका ।
१०. Cradually customs changed. The original, practice
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