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प्रकार भ. महावीर का संघ समस्त लोक-भवनाश्रय ही था । इस वीर संघ का धार्मिक शासन गणधरों अथवा गणाचार्यों के आधीन था नथापि आर्यिका संघ का नेतृत्व सती चन्दना जी को ही प्राप्त था । संघ की व्यवस्था के लिये समुदार नियम बने हुये थे, जिनका रीत से पालन किया जाता था । वह केवल तत्वज्ञान की ही नहीं, बल्कि लौकिक जीवन की उलझी गुत्थियों को सुलझाने की भी चर्चा करते थे, वीर संघ केवल राजे-महाराजे, सेठ-साहूकारों के लिये ही न था बल्कि नीच से नीच अछूत चाण्डाल और अर्जुनमाली जैसे दुष्टों का भी उन्होंने सुधार किया । यही नहीं, बल्कि स्त्रियों, पशु-पक्षियों तक को अविनाशी सुख प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया। उस समय के समस्त राजाओं पर अधिक वीरप्रभाव होने पर भी भ० महावीर ने किसी पर यह दबाव न डाला और न डलवाया कि जनता उनकी आज्ञा का पालन करे । उन्होंने तो सत्य की खोज करके और स्वयं उसे अपना कर संसार को प्रत्यक्ष दिखा दिया कि नीच से नीच आत्मा भी अपने पुरुषार्थ से परमात्मा तक बन सकती है। संसार ने वीर-वाणी को न्याय की कसौटी पर दिल खोल कर खूब रगड़ा और जब उनके सिद्धान्तों को सो फीसदी सत्य पाया तब अपनाया, यही कारण है कि बिना सड़क रेल, मोटर डाकखाना आदि साधनों के २६ वर्ष ५ महीने २० दिनों' के थोड़े से समय में अधर्म को धर्म, हिंसा को अहिंसा और पाप को पुण्य कहने वालों को अहिंसा, सत्य अचौर्य, परिग्रह-प्रमाण और स्वयं स्त्री-सन्तुष्ट, श्रावक के पांच अणुव्रतों में दृढ़ करके पापी से पापी को भी आदर्श शहरी और मुनिव्रत की शिक्षा देकर धर्मात्मा बना कर समस्त संसारी प्राणियों का परम कल्याण किया।
भगवान महावीर के निर्वाण प्राप्त हो जाने पर उनके प्रधान गणधर इन्द्रभूति गोतम को केवल ज्ञान प्राप्त होगया था, उन्होंने १. This book's foot-nots No. 6 of P. 395
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