Book Title: Vardhaman Mahavir
Author(s): Digambardas Jain
Publisher: Digambardas Jain

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Page 418
________________ लोक में तो क्या परलोक तक में उनकी धूम थी । स्वर्ग के देवताओं तक ने परीक्षा करके उनकी बड़ी प्रशंसा की है' । भ० सहावीर का समवशरण उनकी नगरी में आया तो उन्होंने बड़े शाही ठाठ-बाट से भगवान का स्वागत किया और परिवार सहित उनकी बन्दना को गये । वीर - उपदेश से प्रभावित होकर जैन साधु होने के लिये अपने पुत्र के राजतिलक करने लगे तो उसने यह कहकर इन्कार कर दिया कि राजसुख तो क्षणिक है, मुझे भी अविनाशी सुखों के लुटने की आज्ञा देदो | मजबूर होकर राज्य अपने भांजे केसीकुमार को दिया और वे दोनों भ० महावीर के निकट जैन साधु होगये । महारानी प्रभावती भी चन्दना जी से दीक्षा लेकर जैन साधुका हो, वीर संघ में शामिल हो गई । वीर निर्वाण और दीपावली That night, in which Lord Mahavira attained Nirvan, was lighted up by descending and ascending Gods and 18 confederate kings instituted an illumi• nation to celebrate Moksha of the Lord. Since then the people make illumination and this in fact is the 'ORIGIN OF DIPAWALI'. — Prof. Prithvi Raj: VoA, Vol. I. Part. VI. P. 9. सन् ईस्वी से ५२७* साल, विक्रमी स० से ४७० ६ वर्ष, राजा शक से ६०५ साल ५ महीने पहिले कार्तिक वदी चौदश", १४. विस्तार के लिये भ० महावीर ( कामताप्रसाद) पृ० २५२-२५८ । ७ ५. 527 B. C, the date of Mahavira's Nirvan, is a land mark in the Indian History. Accurate knowledge of history begins with Mahavira's Nirvan. -A Chakravarti, I. E. s.: Jain Antiquary. Vol. IX. P. 76. ६. Prof. Dr. H S. Bhattacharya : Lord Mahavira. P. 37. ७- ८. पं. जुगलकिशोर : भ० महावीर और उनका समय (वीर सेवा मन्दिर) पृष्ठ १३ ३६४ ] i Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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