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कथन है कि यमराज ने वर मांगा था कि कार्तिक बदी तेरस से दोयज तक ५ दिन जो उत्सव मनायेंगे उनकी अकाल मृत्यु नहीं होगी । इसलिये दीपावली मनाई जाती है, परन्तु दीपावली एक प्राचीन त्योहार है । महर्षि स्वामी दयानन्द जी और छठे गुरु श्री हरगोबिन्द जी से बहुत पहले से मनाया जाता है। श्री रामचन्द्र जी के अयोध्या में लौटने की खुशी में दीवाली के प्रारम्भ होने का उल्लेख रामायण या किसी और प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ में नहीं मिलता । विष्णु जी तथा अशोक दिग्विजय के कारण दीपावली का होना किसी ऐतिहासिक प्रमाण से सिद्ध नहीं होता। प्राचीन जैन ग्रन्थों में कथन अवश्य है कि : -
"जिनेन्द्रवीरोऽपि विवोध्य संततं समंततो भव्यसमूहसंततिम् । प्रवद्य पावानगरी गरीयसी मनोहरोद्यानवने यदीपके ॥१५॥ चतुर्थकालेऽर्थचतुर्थमासकैविहीनताविश्चतुरब्दशेषके । सकीर्ति के स्वातिषु कृष्णभूतसुप्रभातसन्ध्यासमये स्वभावतः ॥१६॥ अचतिकर्माणि निरुद्धयोगको विधूय घातीं घनव द्विबंधनम् ।। विबन्धनस्थानमवाप शंकरो निरन्तरायोरुसुखानुबन्धनम् ॥१७॥ ज्वलंत्प्रदीपालिकया प्रबुद्धया सुरासुरैर्दीपितया प्रदीप्तया। तदास्म पावानगरी समन्ततः प्रदीपिताकाशलता प्रकाशते ॥१६॥ ततस्तु लोकः प्रतिकर्षमादरात् प्रसिद्धदीपालिकायत्र भारते । समुद्यतः पूजयितु जिनेश्वरं जिनेन्दनिर्वाणविभूति भक्तिभाक् ॥२०॥
-श्री जिनसेनाचार्यः हरिवंशपुराण, सर्ग ६६ भावार्थ-"जब चौथे काल के समाप्त होने में तीन वर्ष साढ़े आठ महीने रह गये थे तो कार्तिक की अमावस्या के प्रातःकाल पावांपुर नगरी में भ० महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया, जिसके उपलक्ष में चारों प्रकार के देवताओं ने बड़ा उत्सव मनाया और १-३, जैन प्रचारक (अक्तूबर २६४०) पृ९ १३ ४. Going to Sakhya, Buddha himself witnessed the grand
occurance of Lord Mahavira's attaining salvation at Pava.
-J. H. M. (Nov. 1924) P.44
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