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जहां तहाँ दीपक जलाये। जिनकी रोशनी से सारा आकाश जगमगा उठा था । उसी दिन से आज तक श्री जिनेन्द्र महावीर के निर्वाण - कल्याण की भक्ति से प्रेरित होकर लोग हर साल भरत क्षेत्र में दिवाली का उत्साह मनाते हैं ।
कार्तिक बदी चौदश और अमावस्या की रात्रि में भ० महावीर समस्त कर्मरूपी मल को दूर करके सिद्ध हुए, कर्म - मल से शुद्धि के स्थान पर हम उस रात्रि को कूड़ा निकाल कर घरों की शुद्धि करते हैं । उसी दिन भ० महावीर के प्रथम गणधर इन्द्रभूति गोतम जी ने केवल ज्ञानरूपी लक्ष्मी प्राप्त की थी, जिसकी पूजा देवों तक ने की थी, उसके स्थान पर चञ्चल लक्ष्मी तथा गणेश जी की पूजा होती है' । गणेश नाम गणधर का है । वीर - समवशरण में मुनीश्वरों, कल्पवासी इन्द्राणियों, अर्यिकाओं व श्राविकाओं, ज्योतिषी देवाङ्गनाओं, व्यन्तर देवियों, प्रसाद निवासियों की पद्मावती इत्यादि देवियों, भवन निवासी देवों, व्यन्तर देवों, चन्द्र-सूर्य इत्यादि ज्योतिषी देवों, कल्प निवासी देवों, विद्याधरों व मनुष्यों, सिंह- हरिण इत्यादि पशु-पक्षियों व तिर्यंचों के बैठ कर धर्म उपदेश सुनने के लिये १२ सभाएँ होती हैं, उसके स्थान पर लीप-पोत कर लकीरें खींच कर कोठे बनाना और वहाँ मनुष्य और पशुओं आदि के खिलौने रखना, वीर - समवशरण का चित्र
१-२. As regards worship of 'Lakshmi' and 'Goanesha' the Jains have a convincing tradition that Indrabhuti, attained Omniscience few hours latter than the Liberation of Mahavirai. The people in honour to his befitting memory began to worship Omniscience-the greatest wealth and hanesha was Goutama himself as he was the head of eleven Ganas of Mahavira - गणानां ईशः गणेशः ।
— Prof. Prithvi Raj: VOA I- Part. VI. P. 9,
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