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सेनापति सिंहभद्र पर वीर प्रभाव
सिंहनामक लिच्छवि सेनापति निगंठ नाठपुत्त (महावीर ) के शिष्य यै । - बौद्धग्रन्थ महावग्ग ( S. BE.) XVII. 116.
सिंहभद्र वैशाली के विशाल राजा चेटक के महायोद्धा सेनापति थे । जब भ० महावीर का समवशरण बैशाली में आया तो यह . भी उनकी बन्दना को गये और भक्तिपूर्वक नमस्कार करके भ० महावीर से पूछा, कि क्या शासन चलाने वाले मेरे जैसे क्षत्रिय के लिये राष्ट्र रक्षा के लिये तलवार उठाना और अपराधियों को दण्ड देना अहिंसा धर्म के विरुद्ध है ? भ० महावीर की वाणी खिरी, जिसमें उन्होंने सुना कि "देशरक्षा के लिए सैनिक धर्म तो श्रावक का प्रथम धर्म है । सैनिक धर्म के बिना अत्याचारों का अन्त नहीं होता और विना अत्याचारों का अन्त किए देश में शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती और बिना शांति के गृहस्थ धर्म का पालन नहीं हो सकता और बिना गृहस्थों के मुनिधर्म सम्पूर्णरूप से पालन नहीं हो सकता । इस लिए देश में शान्ति रखने तथा अत्याचारों को नष्ट करने के हेतु विरोधी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना और अपराधियों को न्यायपूर्वक दण्ड देना गृहस्थियों के लिए अहिंसा धर्म है" । सेनापति सिंहभद्र ने अहिंसा धर्म की इतनी विशालता वीरवाणी में सुनकर तुरन्त ही आवक धर्म के व्रत ले लिये ।
आनन्द श्रावक पर वीर प्रभाव
चार
सेठ आनन्द बाणिज्यग्राम के बड़े प्रसिद्ध साहूकार थे, करोड़ अशर्फियां उनके पास नक़द थो । चार करोड़ अशर्फियां ब्याज पर और चार करोड़ अशर्फियां कारोबार में लगी हुई थीं । करोड़ों अशर्फियों की जमीन-जायदाद थी । चालीस हजार गाय, भैंस, घोड़े, बैल आदि पशुधन था । जब भ० महावीर का सम
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