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उचित अवसर जानकर इतना मार-पीट की कि तुम्हारी मृत्यु होगई । क्या तपस्या की वेदना उससे भी अधिक है ? दूसरे जम्म में फिर हाथी हुए । देवानल से जान बचाने के लिये उचित स्थान पर पहुँचे तो वहां पहले ही बहुत पशु मौजूद थे, बड़ी कठिनाई से सुकड़ कर खड़े होगये । शरीर खुजलाने के लिये तुमने अपना पांव उठाया तो उस जगह एक खरगोश अपनी जान बचाने को आ गया, जिसे देखकर केवल इस लिये कि खरगोश मर न जाय अपने उस पैर को ऊपर उठाये रखा । जब दावानल शान्त दुआ और तुम वहाँ से निकले तो निरन्तर तीन दिन तक तीन टाँगों से खड़ा रहने से तुम्हारा सारा शरीर जकड़ गया था, आप धड़ाम से नीचे गिर पड़े, जिससे इतनी अधिक चोट आई कि तुम्हारी मृत्यु हो गई । जब पशुगति में तुम इतने धीर, वीर और सहन-शक्ति के स्वामी रहे हो तो क्या अब मनुष्य जन्म में श्रमण अवस्था से घबरा गये हो ? अनेक शूरमा शत्रुओं को युद्ध में पिछाड़ देने वाले शूरवीर होकर साधना को पराक्रम भूमि में आकर कर्मरूपी शत्रुओं से युद्ध करने में भय मान रहे हो।
वीर-उपदेशरूपी जल से मेघकुमार की मोहरूपी अग्नि शान्त हो गई । विश्वासपूर्वक संयम धार कर आत्मिक सुखों का आनन्द लूटते के लिये वह आत्मिक ध्यान में दृढ़ता से लीन रहने लगे।
अभयकुमार पर वीर प्रभाव । Prince Abhaya Kumar sdopted the life of a JainMonk.-Some Historical Jain Kings & Heroes, P. 9.
महाराजा श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार ने भ० महावीर से अपने पूर्व-जन्म पूछे, तो वीर-दिव्य-ध्वनि में उसने सुना "अब से तीसरे भव में अभयकुमार तुम एक बड़े विद्वान ब्राह्मण थे परन्तु जात-पात और छूत-छात के भेदों में इतने फंसे हुए थे कि शूद्र
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