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का फूल मुख में दबा कर वह यहां समवशरण में आ रहा था कि रास्ते में तुम्हारे हाथी के पांव के नीचे आकर उसकी मृत्यु होगई । उस के भाव जिनेन्द्र भक्ति के थे जिस के पुण्य फल से वह मेंढक स्वर्ग में देव हुआ, स्वर्ग के देव जन्म से ही अवधिज्ञानी होते हैं,
अवधि-ज्ञान से पिछले हाल को जानकर वह अपने संकल्प को पूरा करने के लिये यहां आया है। मेंढक के जन्म से उस का उत्थान हुआ है इस लिये उस ने अपने मुकुट में मेंढक का चिन्ह बना रखा है।
श्रेणिक ने वीर वाणी में जिनेन्द्र भक्ति का महात्म सुना तो उसे जिनेन्द्र भक्ति में दृढ़ विश्वास हो गया और उस ने अन्य जैन मन्दिर बनवाए । राजगृह के पुराने खंडरों में उस समय की मूर्तियाँ आदि मिली हैं। सम्मेदशिखर पर्वत पर जिन निषधिकायें
बनवाई। उसने अपनी शङ्काओं को दूर करने के लिये भगवान् * महावीर से ६० हजार प्रश्न पूछे जिन का विस्तार आदिपुराण, पद्मपुराण , हरिवंशपुराण', पाण्डवपुराण' आदि अनेक जैन
The literary and legendry tradit.ous of the Jainas about Shrenika are so varied and so well recorded that they are eloquent witnesses to the high respect wit hwhich the Jaidas held by one of their greatest royal patrons, whose historicity fortunately is past all doubts.
-Jainism in Northern India, P. 116-118 २.३. कामताप्रसादः भ० महायोर पृष्ठ १५२ । ४. Asiatic Society Journal, January 1824. 4. Shrerika Bimbisara has been credited by putting thousands of questions to Mahavira,
-Some Historical Jain Ripge & Heroes. P, I3 ६.६. यह सब ग्रन्थ हिन्दी में दि० जैन पुस्ततालय, सूरत से मिल सकते हैं ।
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