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की कि जिसको देख कर कहना पड़ता था कि यदि कोई स्वर्ग पृथ्वी पर है तो यही है, यही है, यही है ।
तीर्थकर भगवान् के समवशरण की यह विशेषता है कि उसका द्वार गरीब-अमोर, छोटा-बड़ा, पापी-धर्मात्मा, सब के लिये खुला होता है' । पशु-पक्षी तक भी बिना रोक-टोक के समवशरण में धर्मोपदेश सुनने के लिये आते हैं | जात-पाँत, छूत-छात और ऊँच-नीच का यहाँ कोई भेद नदीं होता । राजा हो या रङ्क, ब्राह्मण हो या चाण्डाल सब मनुष्य एक ही जाति के हैं और वे सब एक ही कोठे में बैठ कर आपस में ऐसे अधिक प्रेम के साथ धर्म सुनते हैं, मानों सब एक ही पिता की सन्तान हैं ।
भगवान के दर्शनों से बैर भाव इस तरह नष्ट होजाते हैं, जिस तरह सूर्य के दर्शनों से अंधकार । तीर्थकर भगतान की शान्त मुद्रा
और वीतरागता का प्रभाव केवल मनुष्यों पर ही नहीं, किन्तु कर स्वभाव वाले पशु-पक्षी तक अपने बैर भाव को सम्पूर्ण रूप से भूले जाते हैं । नेवला-साँप, बिल्ली-चूहा, शेर-बकरी भी परं शान्तचित्त होकर आपस में प्रेम के साथ मिल-जुल कर धर्मोपदेश सुनते हैं और उनका जातीय विरोध तक नष्ट हो जाता है । यह सब भगवान महावीर के योगबल का माहात्म्य था । उनकी आत्मा में अहिंसा की पूरी प्रतिष्ठा होचुकी थी, इसलिये उनके सन्मुख किसी का भी वैर स्थिर नहीं रह सकता था।
१.२. अनेकान्त वर्ष ११, पृ० ६७ । ३-६. "अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः" । ३५ ।
-महर्षि पातञ्जलि : योगदर्शन अर्थात्-अहिंसा के प्रभाव से कर स्वभाव वाले पशु-पक्षी तक भी अपनी शत्रुता को भूल कर आपस में प्रेम-व्यवहार करने लगते हैं।
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