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और पर का भेद-विज्ञान विश्वासपूर्वक जान कर मुनि-धर्म का पालन करना उचित है, परन्तु जो जीव संसारी पदार्थों की मोह. ममता अनादि काल से करते रहने की आदत के कारण एकदम निग्रंथ साधु होने की शक्ति नहीं रखते, वे गृहस्थ में रहते हुए ही संसारी पदार्थों की मोह-ममता कम करने का अभ्यास करने के लिये सप्तव्यसन' का त्याग करके आठ भूल गुण श्रावक के बारह ब्रत अवश्य धारण करें। जैसे जल बिना बावड़ी, कमल बिना तालाब और दांत बिना हाथी शोभित नहीं वैसे ही तप-त्याग शील संयम आदि के बिना मनुष्य जन्म शोभा नहीं देता । जितनी अधिक श्रद्धा और रुचि इनमें बढ़ेगी, उतनी ही अधिक शान्ति, संतोष और वीतरागता उत्पन्न होगी । इस प्रकार धीरे-धीरे ११ प्रतिमाएँ पालते हुये जिन-दीक्षा लेकर निम्रन्थ मुनि-धर्म पालने का यत्न करना चाहिये। ___ संसारी पदार्थों में सुख मानने वाला लोभी जीव स्वर्ग प्राप्ति की अभिलाषा करता है, परन्तु स्वर्गों में सच्चा सुख कहाँ ? जिस प्रकार क्षीर सागर का मीठा और निर्मल जल पीने वाले को खारी बावड़ी का जल स्वादिष्ट नहीं लगता, उसी प्रकार मोक्ष के अविनाशी तथा सच्चे सुखों का स्वाद चखने वालों को संसारी तथा स्वर्ग के सुख आनन्ददायक नहीं होते । इसलिये सम्यग्दृष्टि देव तथा देवों के भी देव इन्द्र तक मनुष्य जन्म पाने की अभिलाषा करते हैं कि कब स्वर्ग की आयु समाप्त होकर हमें मनुष्य जीवन मिले और हम तप करके कर्मों को काट कर मोक्ष रूपी अविनाशी सुख प्राप्त कर सकें । कर्म बाँधने के लिये तो चौरासीलाख योनियाँ हैं, परन्तु कर्म काटने के लिये केवल एक मनुष्य-पर्याय ही है। मनुष्य जन्म मिलना बड़ा दुर्लभ है। निगोद से निकलने के बाद १-६. श्रावक-धर्म-संग्रह (वीरसेवामन्दिर सरसावा मू० १) पृ० ७७-२५३ । ३५० ]
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