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शरण पहुंचा तो वहाँ के राजा उदयन भ० महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर राज छोड़ कर जैन मुनि हो गये थे' । दशार्ण देश में भ० महावीर का विहार हुआ तो वहाँ के राजा दशरथ ने उनका स्वागत किया । पाञ्चाल देश की राजधानी कम्पिला में भ० महावीर पधारे तो वहां का राजा "जय" उनसे प्रभावित होकर संसार त्याग कर जैन साधु हो गया था । सोर देश की राजधानी मथुरा में भ० महावीर का शुभागमन हुआ तो वहां के राजा उदितोदय ने उनका स्वागत किया और उसका राजसेठ जैन धर्म का दृढ़ उपासक था, उसने भगवान् के निकट श्रावक के व्रत धारण किये थे । गांधार देशको राजधानी तक्षशिला तथा काश्मीर में भी भ० महावीर का विहार हुआ था । तिब्बत में भी जैन धर्म प्रचार हुआ था । विदेशों में भी भ० महावीर का विहार हुआ था। श्रवण वेल्गोल के मान्य पण्डिताचार्य श्री चारुकीर्ति जी तथा पंडित गोपालदास जी जैसे विद्वानों का कथन है कि दक्षिण भारत में
१-५ कामताप्रसाद : भ० महावीर पृ० १३४-१३५ । ६. The well- known Tibetan Scholar [r. Tucci found
distinct traces of Jain religion in Tibet. -Alfred Master, I. C. S., C. I. E : Vir Nirvanday in London,
(World. J. Mission Aliganj, Eta) P. b. । ७. महावीर स्मृतिग्रन्थ (आगरा) पृ० १२३, ज्ञानोदय (अप्रैल १९५१) जैन
सिद्धान्त भास्कर भा० ११, पृ० १४५, जैन होस्टल मेगजीन (जनबरी १९३१) पृ० ३, जैन धर्म महत्व (सूरत) पृ०६६-१.७७. इसी ग्रंथ का भा० १।
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