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लगभग डेढ वर्ष पहले हु हजार से जैनी अरब से आ कर आबाद हुए थे' । यदि भगवान् महावीर का प्रचार वहाँ न हुआ होता तो वहाँ इतनी बड़ी संख्या जैनियों की कैसे हो सकती थी ? श्री जिनसेनाचार्य ने (हरिवंशपुराण पृ० १८ ) में जिन देशों में भ० महावीर का विहार होना लिखा है उनमें यवनश्रुति, कवाथतोयं, सूमभीरू, तार्ण, का आदि देश अवश्य ही भारत से बाहर हैं' । यूनानी विद्वान् भ० महावीर के समय बैकिटया में जैन मुनियों का होना सिद्ध करते हैं । अबीसिनिया, ऐथुप्या', अरब" परस्या", अफगानिस्तान, यूनान में भी जैन धर्म
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का प्रचार अवश्य हुआ था ।
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विलफर्ड साहब ने 'शङ्कर प्रादुर्भव' नाम के वैदिक ग्रन्थ के आधार से जैनियों का उल्लेख किया है" । जिस में भगवान् पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी दोनों तीर्थंकरों का कथन 'जिन' 'अर्हन्' 'महिमन' (महामान्य) रूप में करते हुए लिखा है कि 'अन्' ने चारों तरफ विहार किया था और उनके चरणों के चिन्ह दूर दूर मिलते हैं । लंका, श्याम आदि देशों में महावीर के चरणों की पूजा भी होती है' । परस्या, सिरिया और एशिया मध्य में 'महिमन' ( महामान्य = महावीर) के स्मारक मिलते हैं' ४ । मिश्र १ - २, Sir William Johns : Asiatic Researches, Vol.IX. P. 283. ३. संक्षिप्त जैन इतिहास भा० २, खण्ड १, पृ० १०३ |
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४. Magesthins and Aryans (1877 ) Vol II. P. 29.
५-६. Ancient Greek found Sramanas (Jain Monks) travelling the countries of Euthopia and Abyssinia. -Asiatic Resesarches Vol. III. P. 6.
७-१०. Existence of Jainism in Arbia, Persia and Afghanistan are available. Cunningham, Ancient Geography of India (New Edn.) P. 671 and Jain Antq. VII, P. 21. ११-१४. Asiatic Researches, Vol. III P. 193-199.
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