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दिव्योपदेश से उनका अज्ञान रूपी अन्धकार जाता रहा और वे धर्म पुरुषार्थी बन गये । वत्सदेश की राजधानी कौशाम्बी (इलाहाबाद) में वीर समवशरण आया तो वहाँ के राजा शतानीक वीर उपदेश से प्रभावित होकर जैन मुनि होगये । कलिगदेश (उड़ीसा) में समवशरण आया तो वहां के राजा जितशत्रु ने बड़ा आनन्द मनाया और सारा राज-पाट त्याग कर जैन साधु हागये थे । इस ओर के पुण्ड, बङ्ग, ताम्रलिप्ति आदि देशों में भी वीर-विहार हुआ था, जिस से वहां के लोग अहिंसा के उपासक बन गये थे६ ।। हेमाङ्गदेश-(मैसूर) में वीर-समवशरण पहुँचा तो वहाँ के राजा जीवन्धर भगवान् के उपदेश से प्रभावित हो, संसार त्याग कर जैन साधु हो गये थे । अश्मकदेश की राजधानी पोदनपुर में वीर समवशरण आया तो वहां का राजा विद्रदाज उनका भक्त होगया । राजपूताने में वीर समवशरण के प्रभाव से वहां के राजा व राणा अहिंसा प्रेमी बन गये । यह भ० महावीर के प्रचार का ही फल है कि अपनी जान जोखिम में डाल कर देश की रक्षा करने वाले आशशाह और मामाशाह जैसे जैन सूरवीर योद्धा वहां हुए । मालवादेश की राजधानी उज्जैन में वीर समवशरण पहुँचा तो वहां के सम्राट चन्द्रप्रद्योत ने बड़ा उत्साह मनाया था। सिन्धु सौवीर प्रदेश की राजधानी रोरूकनगर में वीर-समव१.११. भ० महावीर (कामताप्रसाद) पृ० १३३-१३४ । ३७० ]
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